पृष्ठम्:अथर्ववेदभाष्यम् भागः १.pdf/५

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Aश्र्म् a ܢܐܡܐSܢ জ্ঞতাইগ্রিস্তুস্ৰাংফর্মুলিঙ্কা। यो भूतं चु भव्र्य चु सर्वे यश्चधितिष्ठति । स्त्र १र्यस्य चुकेवल तस्मैं'ज्येष्ठाय ब्रहर्क्षणे नर्भः॥१॥ अधर्चा • ६० १० स्४, ८ म० १ ॥ { यः } जो परमेश्वर ( भूतम्) प्रतीति क्राश (च) और ( भाव्यम्) भविष्यत् काल फ्रा, { च } श्रीरः (यः) द्रॊनॊ ( सर्व्वम्) स च संसार का (श्च) अवश्य SSDuDDDDu S uuuuDu u SDSS uuD SDSSYD SSDDDSS uDuD DS ( केचलम) केघ्रल स्मरुप हैं, (तस्मै ) उस (जेण्टाय) सब से बड़े ( ब्रह्मले) वक्ष्यः, जगदीश्वर की ( नमः) नमस्फार ईं ॥ हे परमपिता , परमान्मन् ! आप, भूत, मविष्यत्, घर्तमान और सब जगत् के स्वामी हैं, आप केवल आनन्द स्क्रूप और अनन्त सामथ्र्य वाले हैं । है प्रभु! आप हमारे दृदय में सदा धिराजिये, आप को इमारा बारम्वार नमस्फार हें ॥ यामृर्ययो भूतछते से थां मेंधाविने विदुः । तया मामदा लेधयाग्नें मेधाविन छधु ॥ १ ॥ अथर्घ० का० ६ सू० १oम भ० ४ ॥ (अग्ने) हे सर्वथापक, प्रकाश स्वरूप परमेश्वर !(याम) जिस (मेश्राम) धारणवती बुद्धि का ( भूनकृत: ) यथार्थ काम करने हारे , (मेधायिनः) दृढ़