पृष्ठम्:अथर्ववेदभाष्यम् भागः १.pdf/६

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R अय्यर्वचैदभाष्यभूमिका । - पुद्धि वाले , (ऋपय: ) वेद का तस्य जानने थाने ऋषि , (पिद्धः) tान रमते zS gguS DDD S DDDD SS DD DDD DDD S DDDSSS DDD DDD S DBH S DDD (मेधाविन्म) ग्रचन्द्र युद्ध वाला ( कृष्णु) कर ! S DDDBBD DDBD S DBD D BDD DuD D BDu DDD बुरिर DD DD D DD DD DuD uDuuD SDDDS GtDDuL LDG DDS त्माश्री की होती है, जिस से हमें वेदों का थथार्थ शान हो और म लसर भर में असफा प्रकाश करें। स्खस्ति भुङ्क्ष्ाघ्र उत पुिन्ने नेर्गं अस्तु स्वस्ति गोभ्यूंी R- • ! R l يج: | pre- w جی بیٹ जगंते पुर्सपेभ्यः । विश्र्वं सुभूतं सुद्विष्ट्र्र्त्र नो अर्तु ज्योगे व्र छुशेस सूर्वेम् ॥ ३ ॥ श्रंथर्य० फ० १०३६ ग:०४॥ (न:) इमारी (मात्रे) माता के लिये (उत) और (पित्रे) पिता के लिये (स्वस्ति) आनन्द (अस्तु) इंग्वे और (गोभ्यः) गौद्यों के लिये, (पुग्ग्रेभ्यः) धुप के लिये और (जयते) जगत् के लिये (स्वस्ति) अनन्द हवे' (व्यग्र ? संपूर्णं (ह्युभूतम्.) उच्चम ऎश्वर्यं श्रीर (खुचिदत्रम् ) उरुम एतानि वा युन्नः (नः) हमारे लिये (श्रस्तु) हो (ज्योक) बहुत काल तफ (सयम) सूर्य को (एच) हौ { दृशेम ) इमा देगाते रहें ॥ है परम रक्षक परमात्मन् ! हमें येद विमान दीजिये जिस से हम अपने फर्तव्य को समर्म और करें, अपने हितकारी माता पिता आदि सध परियर, सव मनुष्यों , सय गी आदि पशुओं , और सब संसार की सेया कर और सच के आनन्द में अपना आनन्द जरमें, और जैसे सूर्य के प्रकाश में रसश्च कामों को सुख से करते हैं, वैसे ही, हे भकाशमय, शान स्वरूप, सपन्तिम प्रभु! आप के ध्यान में मग्न होकर हम सदा पसन्न चित रहें ॥ २-वेद ॥ तस्माद्ध युञ्ज्ञात् संर्व हुतु ऋचुः सार्मानि जज्ञेिरे ॥ Apr. 'श्छन्दंसि जज्ञिरे तस्म्ाद् यजुस्तस्माँदजायत ॥ t - ****tě, "g" Rť tvo, trať spr. tsis,