पृष्ठम्:अथर्ववेदभाष्यम् भागः १.pdf/७

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अथर्ववेदमाष्यभूमिका । s (तस्मा) उस ( यज्ञात) पूजनीय और (सर्चहुतः) लय के प्रदश करने योग्य परमेश्वर से (ऋचः ) ऋग्वेन : पदाथों की गुणप्रकाशक विद्या ] के मन्त्र और (सामानि) साम वेद [ मोक्ष धिग्रा ] के मन्त्र { जझिऐ) उत्पत्र छुये। (तस्मात्) उस से । छन्दांखि ) अथर्ववेद [ आनन्ददायक विद्या] के मन्त्र (ज्ञश्रेि) उत्पन्न दुर्ये, श्रीर (तस्मात्) असि से एी (यजुः) यच्छुर्धैद [सत्कर्मो का क्षान ] (अजा।थत ) उत्पन्न छुआ है। यस्म्छ्रुचे' अपर्त्क्षु न् यजुर्यस्मtष्टुपार्काषन् । सामtनि यस्यु लोमान्यथर्वाङ्गरी मुर्खम्। स्कभ्र्भ -- كما तं ॠह्निं कतुमः स्र्व्विदेव सः ॥ २ ॥ अधर्ध० का० १u। सू० ७ । म० ६० ॥ (यस्मान) जिस परमेश्वर से प्रास करके (ऋच:ी पदार्थों के शुणप्रकाश भन्मों को (अप-अतक्षन) उन्होंने [ ऋपियों ने I सूक्ष्म किया [ भले प्रकार विचारा 1 (यभात) जिस ईश्वर से प्राप्त करके (यज़: ) सन्कर्मों के शान की ( अप-अकपन) उन्होंने कस, अर्धात कसौटी पर रक्स्ना, (सामानि) मोक्ष पिद्यार्य (यन्य) जिस के (शोभानि ) रोम के समान व्यापक हैं, और ( अथर्धश्राङ्गिरसः ) श्रयार्घ श्रर्थात् निश्चला जो परन्रह्म है उसके शान के मन्त्र ( मुक्त्रम्) मुम्व के समान मुख्य हैं. (स:) यह (५य ) निश्धय करके (कतमासित) कौन सा है। [ इसका उत्तर J (तम) उसको ( स्कम्भम) स्वंभ के समान ब्रह्मांड का सहारा देने वाला ईश्वर (श्रृंहि) दू कह ॥ DD D uDu zuD DDuDuDS uDuDuuDS DDDD Du BDDDD DDD हैं,और चारों वेद सामान्यता से सार्वलौकिक सिद्धान्तों से परिपूर्ण होने के कारण ममुष्य भाव और सच संसार के लिये कश्याणकारक हैं | उस परम गिता जगदीश्वर का अति धन्यवाद है कि उसने संसार फी भलाई के लिये यष्टि के आदि में अपने अटल नियम को इन धारी वेदी के द्वारा प्रकाशित किया। यह पवारों वेद एक तो सांसाररिक व्यवहारी की शिक्षा से परमात्मा फे शान फा, श्रीर दूसरे परमात्मार्फे छान से सांसारिक व्यवहारी का उपदेश करते हैं। संसार में यही दो मुच्य पदार्थ हैं जिन की यथार्थ प्राप्ति और अभ्यास पर भक्षुष्य मात्र की उन्नति का निर्भर है। इन चारों घेर्दो की ही प्रयी