पृष्ठम्:अथर्ववेदभाष्यम् भागः १.pdf/८

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炒 श्रयवंव T b चिया [तीन विद्याओं का भण्डार] फटते हैं। जिस का अर्थ परमेश्वर के कर्म उपासना और झान से संसार के साथ जपकार करना है। वेदों में सार्वभौम चिझान का उपदेश है। s * ܗ ܐ ܥܕझुह्युचर्येशु तर्पसुा राजांशष्ट्र व् िरंक्षति । झुाचुार्ये ब्रह्मचर्येष्म ब्रह्मश्रुा९िशमिच्छते ॥ १ ॥ अथर्ववैव-क्रा० ११, स्यू०५, म० १७ ॥ (श्रह्मचर्योग ) वेदविचार और जितेन्द्रियता रूपी (तपसा) तप से (राजा) ५ाजा ( राष्ट्रम) राज्य की (वि) अनेक प्रकार से (रक्षति) रक्षा करता है। (आधार्थ: }अंगों और उपाङ्गी सहित वेदों का अध्यापक, आचार्य (ब्रह्मचर्यश) DD D Du DDD D DDDLDD DDDDBD D DuDD DD DS न्द्रिय पुरुष से (श्च्छते) प्रेम करता है, अर्थात वेदी के यथावत झान, अभ्यास, और इन्दिर्यी के दमन से मनुष्य सांसारिक और पारमार्थिक उन्नति की परा सीमा तक पहुँच जाता है। भगवान कणावमुनि कहते हैं-वैशेपिक दर्शन अध्याथ दै,झाढुनिक १,सृ१॥ - t 58ܩ ܕܡ जुढ़ेिपूल वाक्यकृतिवेंदे । १ ।। घेद में वाक्य रचना बुद्धि पूर्वक है! अर्थात् वेद में सब वार्तें सुद्धि के अउ० कूल हैं1॥ पण्डित अक्षम्भइ संकलग्रह पुस्तक के शब्दखण्ड में लिखते हैं। वाक्यं द्विविध वैदिक लौकिक च। वैदिकमीश्वरोचकत्वात् सर्वमेव प्रमाणम्। लौकिकं त्वाप्नोत्ततं प्रमाणम्। Wh वाक्य दो प्रकार का है. वैदिक और लौकिक । वैदिक वाक्य ईश्वरोक्त होने से सच ही प्रमाण है । लौफिक चाक्य केवल सत्यवता पुष्प का वचनग्रमाणाद्वै॥ मधु महाराज मनुस्मृति में लिखते हैं । वेदमेत्र सदाभ्यसेद्र तपस्तप्यन् द्विजोत्तमः वेदाभ्यासो हि विप्रस्य तपः परमिहोच्यते ॥१॥२॥१६६॥