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विषयाः |
पृ. |
प.
|
निर्घातस्वरूपम् |
३०७ |
४
|
निर्घाताद्भुतावर्त्तः |
३०७ |
२
|
निर्घातोत्पातशान्तिः |
३०९ |
२२
|
निर्वातजलोत्पत्तिविकारः |
४१२ |
१२
|
निष्ठ्यूते रिष्टविचारः |
५५६ |
१३
|
निष्प्रभसूर्यविकारः |
१८ |
७
|
नेत्ररिष्टम् |
५१८ |
१८
|
नेत्रविकारः |
५३५ |
२५
|
नेत्ररिष्टशान्तिः |
५२१ |
२१
|
नैर्ऋतीदिग्देशाः |
२६० |
१५
|
नैर्ऋतीप्रधानदिग्देशाः |
२६१ |
१९
|
न्यग्रोधे पुष्पिते विकारः |
४४९ |
१६
|
|
[प] |
|
पञ्चभङ्गः |
८८ |
१२
|
पटहादिविकारः |
७०६ |
१०
|
पतितवृक्षोत्थानविकारः |
४४२ |
६
|
पत्रे पत्रोत्पत्तौ फलम् |
४५३ |
१५
|
पद्मकेतुलक्षणम् |
१८५ |
१९
|
पद्मकेतोरमृतजस्य लक्षणम् |
१८५ |
११
|
पद्मोपलादिविकारपाकः |
७४५ |
२३
|
परचक्रभये शान्तिः |
७३४ |
७
|
परिविष्टचन्द्रे इन्द्रधनुर्विकारः |
३०२ |
२
|
परिवेषवर्णा दिक्पालकृताः |
२८५ |
२१
|
परिवेषविकारपाकः |
२९७ |
५
|
परिवेषविशेषविकारः |
२९५ |
१३
|
परिवेषस्थभौमादिफलम् |
२९२ |
३३
|
परिवेषस्य वायुकृतस्य वर्णफलम् |
२८७ |
२
|
|
|
|
विषयाः |
पृ. |
प.
|
परिवेषस्वरूपम् |
२८५ |
७
|
परिवेषद्भुतावर्त्तः |
२८५ |
६
|
परिवेषे जन्मर्क्षादौ फलम् |
२९२ |
१२
|
परिवेषे द्वित्र्यादौ फलम् |
२९१ |
१८
|
परिवेषोत्पातशान्तिः |
२९६ |
१४
|
परिवेषो वायुकृतः |
२८६ |
१५
|
परिवेषो वृष्टिकरः |
२९१ |
१८
|
पर्वतज्वनविकारः |
४१८ |
१
|
पशुमरणे शान्तिः |
७३४ |
३
|
पशुविकृतिपाकः |
७४५ |
१५
|
पश्चिमदिक्प्रधानदेशाः |
२६२ |
२३
|
पश्चिमदिग्देशाः |
२६१ |
२२
|
पाकसमयाद्भुतावर्त्तः |
७४४ |
१९
|
पादावघट्टनविकारः |
५४२ |
२२
|
पानपात्रज्वलनविकारः |
४१७ |
१५
|
पांशुवृष्टिविकारपाकः |
७४७ |
४
|
पांशुवृष्टिः |
३७९ |
१४
|
पिङ्गलिकाचेष्टाविकारः |
६८० |
१५
|
पिङ्गलिकाद्भुतावर्त्तः |
६८० |
२
|
पिङ्गलिकायवृक्षसास्वावलम्बित्वेन फलम् |
६८० |
१२
|
पिङ्गलिकाशब्दपलम् |
६८० |
९
|
पिङ्गलिकास्थानविशेषफलम् |
६८० |
३
|
पिटकवर्णफलम् |
४९० |
३
|
पिटकस्याङ्गविशेषेषु फलविशेषः |
४९० |
५
|
पिटकाद्भुतावर्त्तः |
४९० |
२
|
पिपीलिकाद्यद्भुतशान्तिः |
६७० |
१९
|
पिपीलिकाद्यद्भुतावर्त्तः |
६६९ |
३
|
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