अन्योक्तिमुक्तावलीश्लोकानां वर्णक्रमेणानुक्रमणिका।
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विषयाः |
पृ. |
श्लो.
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अकस्मादुन्मत्तः प्रहरति |
३६ |
८८
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अखर्वखर्वगर्तासु |
२४ |
१९५
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अगुरुरिति वदति लोके |
१२२ |
११७
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अग्निदाहे न मे दुःखं |
९२ |
५५
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अङ्गानि मे दहतु कान्त |
१४६ |
२५
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अच्छ उत्ता सरस फलं |
१३५ |
२९२
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अणुरायरयनिभरियं |
१४४ |
२४
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अतिपटलैरनुयातां |
१०६ |
१११
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अतिविततगगनसरणि |
५ |
४५
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अत्रस्थः सखि लक्ष |
६८ |
१२८
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अथानुक्रमद्वाराणि |
३ |
२५
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अथाभिव्यक्तये ब्रूमः |
९३ |
८
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अथाष्टमपरिच्छेदे |
१४२ |
८
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अथोच्यते जलधर |
२५ |
७
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अदृष्टिव्यापारं गतवति |
७८ |
२४
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अद्यपि न स्फुरति |
२८ |
२७
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अद्यापि स्तनशैल |
९ |
७८
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अद्रौ जीर्णदरीषु |
४५ |
५५
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अधः करोषि यद्रत्नं |
९५ |
१८
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अध्यासीनाश्ववारै |
१४० |
२४८
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अध्वन्यध्वनि भूरुहः |
१२८ |
१६७
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अनन्यसाधारणसौरभा- |
८२ |
५६
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अनया रत्नसमृद्ध्या |
९५ |
१९
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अनसि सीदति सैकत- |
४४ |
४८
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अनस्तमितसारस्य |
८८ |
२५
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अनिल निखिलविश्वं |
१५० |
७८
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अनिशं मतङ्गजानां |
२९ |
३६
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अनुचितफलाभिलाषी |
६८ |
१३२
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अनुमतिसरसं विमुच्य चूतं |
६५ |
११३
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विषयाः |
पृ. |
श्लो.
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अनुसरति करिकपोलं |
८१ |
४४
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अनुसर सरस्तीरं |
७४ |
१८०
|
अन्तः किंचित् किंचित् |
९५ |
२३
|
अन्तः कुटिलतां विभ्रत् |
७७ |
११
|
अन्तः केचन केचनापि |
११५ |
६६
|
अन्तः प्रतप्तमरुसैकत |
११८ |
८४
|
अन्तः समुत्थविरहानल |
३२ |
५९
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अन्तश्छिद्राणि भूयांसि |
१२४ |
१३५
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अन्तर्वलान्यहममुष्य |
२६ |
१७
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अन्तर्वहसि कषायं |
१२२ |
११६
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अन्नेहिं वि कूवजलेहिं |
२१ |
१७४
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अन्नो को वि सहायो |
१०१ |
६७
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अन्या सा सरसी |
५६ |
३९
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अन्यासु तावदुपमर्द |
७९ |
३६
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अन्यास्ता मलयाद्रि |
३९ |
१४
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अन्ये ते जलदायिनो |
७४ |
१७७
|
अन्ये ते सुमनोलिहः |
८३ |
६७
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अन्येऽपि सन्ति बत |
७४ |
१७६
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अन्योऽपि चन्दनतरो |
२० |
१६५
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अन्वेषयति मदान्ध |
२६ |
१३
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अपगतरजोविकारा |
१७ |
१४१
|
अपरतरुनिकरमुक्तं |
१३६ |
२२१
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अपसर मधुकर दूरं |
८२ |
५३
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अपसरणमेव शरणम् |
५५ |
२८
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अपि त्यक्तासि कस्तूरि |
१५० |
८०
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अपि दलन्मुकुले वकुले |
८२ |
५९
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अब्जं त्वज्जमथाब्जभूः |
९४ |
१३
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अब्धिना सह मित्रत्वे |
९५ |
२२
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अब्धेरर्णः स्थगित |
९७ |
३६
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