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विषयाः |
पृ. |
श्लो.
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आपूर्येत स्फुरच्छवि |
७५ |
१८३
|
आबद्धकृत्रिमसटा |
४६ |
५९
|
आमरणादपि विरुतं |
६६ |
११७
|
आमूलाग्रनिवद्धकण्ट |
१३४ |
२०९
|
आमोदीनि सुमेदुराणि च |
१३६ |
२२४
|
आमोदैर्मरुतो मृगाः |
११० |
३२
|
आमोदैस्तैर्दिशि दिशि |
११६ |
७३
|
आयाति याति पुनरेति |
८४ |
७४
|
आयाते दयिते मरुस्थल |
४२ |
३५
|
आयान्ति त्वरितं गभीरसरितां |
१११ |
४०
|
आयासं रुद्धं पल्लवेहि |
१३० |
१७५
|
आरामाभरणस्य पल्लव |
१२२ |
११९
|
आरामोऽयसनर्गलेन |
३५ |
७९
|
आलस्यं स्थिरतामुपैति |
१६ |
१३४
|
आलोकवन्तः सन्त्येव |
७ |
६०
|
आश्वास्य पर्वतकुलं |
२२ |
१७९
|
आसन्ननाशं सलिलं तटाके |
१०१ |
७५
|
आसन्यावन्ति याञ्चासु |
२१ |
१७५
|
आहारे शुचिताखरे |
६२ |
८५
|
इक्कस्स मलयगिरिणो |
८८ |
२२
|
इक्कुच्चिय उदयगिरी |
८७ |
९८
|
इक्केण कोत्थुहेण |
९१ |
५०
|
इतः स्वपिति केशवः |
९८ |
४४
|
इदमकटुकपाटं |
६० |
६९
|
इन्दुः प्रयास्यति विनङ्क्ष्यति |
७८ |
२३
|
इन्दुर्युद्युदयाद्रिमूर्ध्नि |
९ |
७७
|
इयं पल्ली भिल्लै |
६१ |
७३
|
इलातलभराक्रान्त |
४७ |
६८
|
इह किं कुरङ्गशावक |
३८ |
४
|
इह सरसि सहर्षं |
८३ |
६३
|
इहानेके सत्यं वृषमहिष |
३६ |
९४
|
ईश्वरान्योक्तयस्तद्वत् |
४ |
३३
|
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विषयाः |
पृ. |
श्लो.
|
उचितं नाम नारिङ्ग्यां |
१६९ |
२४१
|
उच्चैरुच्चर रुचिरं |
७६ |
९
|
उच्चैरेकतरुः फलं च |
६० |
६८
|
उच्चैः स्थानकृतोदयैः |
११ |
९४
|
उड्डगणपरिवारो |
९ |
७६
|
उत्कटकण्टककोटी |
१२७ |
१५६
|
उत्कूजति श्वसति मुह्यति |
७१ |
१५३
|
उत्कूजन्तु वटे वटे |
६४ |
१०२
|
उत्तुङ्गैस्तरुभिः किमेभि |
१४० |
२५०
|
उत्तंसकौतुकरसेन |
११९ |
९८
|
उत्तसेषु ननर्त न क्षितिभुजां |
९० |
४१
|
उत्पत्तिः पयसां निधे |
१० |
८५
|
उत्पादिता खलु स्वयं |
१६ |
१३०
|
उत्फुल्लरम्यसहकार |
११९ |
९४
|
उदयमयते दिङ्मालिन्यं |
५ |
४६
|
उदस्योच्चैः पुच्छं |
१५२ |
९४
|
उदितवति द्विजराजे |
१२४ |
१३४
|
उदेति सविता ताम्रः |
५ |
४०
|
उद्दामाम्बुदनादनृत्य |
१०२ |
८१
|
उद्यन्त्वमूनि सुबहूनि |
६ |
४९
|
उद्यानपालकलशाम्बु |
११८ |
८६
|
उपरि नासिसरःपरिताडित |
१४४ |
२६
|
उभौ श्वेतौ पक्षौ |
६२ |
८२
|
उषितः कोकिलयापि |
६६ |
११८
|
ऊढा येन महाधुरा |
४५ |
५४
|
ऊर्णां नैष दधाति |
१५२ |
९३
|
एक एव खगो मानी |
७२ |
१५९
|
एकस्मिन्दिवसे मया |
८९ |
३८
|
एकस्य तस्य मन्ये |
१७ |
१३८
|
एकाकिनि वेनवासिनि |
२७ |
२५
|
एकेनार्कं प्रकटितरुषा |
७१ |
१५२
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