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विषयाः |
पृ. |
श्लो.
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एके भेजुर्यतिकरगताः |
१४० |
२५३
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एकोऽहमसहायोऽहं |
२६ |
११
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एणः क्रीडति शूकरश्व |
२७ |
२२
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एणश्रेणिः शशकपरि- |
११० |
२९
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एणाद्याः पशवः किरात |
११८ |
८७
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एतदत्र पथिकैकजीवितं |
२२ |
१८३
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एतस्माज्जलधेर्जलस्य |
९६ |
३४
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एतस्मादमृतं सुरैः |
९७ |
३८
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एतस्मिन्मरुमण्डले |
१०३ |
८५
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एतस्मिन्मलयाचले |
६९ |
१३७
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एतस्मिन्वनमार्गभूपरि |
१२० |
१०१
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एतस्मिन्सरसि प्रसन्न |
४८ |
८६
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एतानि बालधवल |
४५ |
५७
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एतान्यहानि किल चातक |
१९ |
१५८
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एतावत्सरसि सरोरुहस्य |
५ |
४२
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एतासु केतकिलतासु |
१२७ |
१५४
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एते कूर्चकचाः सकङ्कण |
१४४ |
२९
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एते च गुणाः पङ्कज |
१२४ |
१३६
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एतेषु हा तरुणमरुता |
२२ |
१८१
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एतैर्दक्षिणगन्धवाह |
११६ |
६९
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एनाममन्दमकरन्द |
८३ |
६४
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एष बकः सहसैव |
६१ |
७५
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ओंकारो मदनद्विजस्य |
११ |
९६
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ओंनमः शाश्वतानन्द |
१ |
१
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और्वस्यावरणं गिरेश्च |
१०० |
५७
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कः कः कुत्र न घुर्घुरायित |
२७ |
२३
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कज भज विकसमभितः |
१२३ |
१२८
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कण्टारिकाया अन्योक्तिः |
१०९ |
२०
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कण्टिल्लो सकलाओ |
१३५ |
२११
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कति कति न मदो |
३७ |
३
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कतिपयदिवसस्थायी |
१०१ |
७२
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विषयाः |
श्लो|
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कति पल्लविता न पुष्पि- |
१२० |
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कथय किमपि दृष्टं |
७०
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कथयत इव नेत्रे कर्णमूलं |
१४६
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कनकभूषणसंग्रहणोचितो |
८९
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कन्दे सुन्दरता दले सरलता |
१२१
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कम्पन्ते गिरयः पुरंदर |
२४
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कम्बाघातैर्वपुषि निहतै |
१७९
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कर्णारुन्तुदमन्तरेण |
६६ |
१
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कर्णे चामरचारुकम्बु |
३१
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कर्णेजपा अपि सदा |
३
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कर्तव्यो हृदि वर्तते |
२२ |
१
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कर्पूरधूलीरचितालवाल |
१३८ |
१
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कर्पूर रे परिमलस्तव |
१५१
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करटिकरटे भ्रश्यद्दाम |
३४
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करभ किमिदं दीर्घश्वासै |
४३
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करभदयिते यत्तत्पीतं |
४३
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करभदयिते योऽसौ |
४१ |
३
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करान्प्रसार्य सूर्येण |
५ |
३
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करिकलभ विमुञ्च |
३५ |
८
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कलकण्ठ यथा शोभा |
६३ |
८
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कलयति किं सदा फल |
११० |
२
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कलयतु हंस विलास |
६१ |
७
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कल्पद्रुमोऽपि कालेन |
२४ |
१९
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कल्याणं नः किमधिक |
१४७ |
५
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कल्लोलवेल्लितदृषत् |
९८ |
४
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कल्लोलैः स्थगयन्मुखानि |
९७ |
४१
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कवलितमिह नालं |
७१ |
१४९
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कस्तूरीति किमङ्ग |
१५१ |
८२
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कस्त्वं भोः कथयामि |
१३५ |
२१३
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कस्त्वं लोहितलोचनास्य |
६१ |
८१
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काकतुण्डोक्तिरपरा |
१०८ |
११
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काकैः सह विवृद्धस्य |
६२ |
८६
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