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विषयाः |
पृ. |
श्लो.
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काचिद्बालकवन्महीतल |
१६ |
१३२
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काचो मणिर्मणिः काचो |
८९ |
३१
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कान्ताकेलिं कलयतु |
११५ |
६५
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कान्तोऽसि नित्यमधुरोऽसि |
१३० |
१८१
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कामं भवन्तु मधुलम्पट |
१२४ |
१३७
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कामं श्यामतनुस्तथा |
१०६ |
१०७
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कायः कण्टकभूषितो न च |
१३१ |
१८७
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कारणवसेण सुन्दरि |
५९ |
५८
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कारुण्यपुण्यसत्सद्म |
१०८ |
२
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कालातिक्रमणं कुरुष्व |
२३ |
१९१
|
किमत्र हे चातक दीर्घकण्ठं |
७३ |
१६७
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किमसि विमनाः किंवो- |
१४३ |
१५
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किमेतदविशङ्कितः |
३९ |
१७
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किं कीर कोकिल मयूर |
६७ |
१२५
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किं केकीव शिखण्डि |
६७ |
१२७
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किं चन्द्रेण महोदधे |
९६ |
३२
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किं जातैर्वहभिः करोति |
३९ |
१६
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किं जातोऽसि चतुष्पथे |
११० |
३१
|
किं ते नम्रतया किमुन्रत |
११४ |
६०
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किं तेन संभृतवतापि |
१०२ |
८३
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किं दूरेण पयोधरा |
७० |
१४२
|
किं नाम दर्दुर |
४७ |
७३
|
किं नाम दुष्कृतमिदं |
७३ |
१७४
|
किं पुष्पैः किं फलैस्तस्य |
१३५ |
२१६
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किं व्रूमो जलधेः श्रियं |
१६ |
३३
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किं मालतीकुसुम ताम्यति |
१२५ |
१४५
|
किं वाच्यो महिमा |
९८ |
४७
|
कि वानया पिशुनया |
३ |
२०
|
किं व्यक्तीकुरुषे सरोज |
१४३ |
१९
|
किं शुक किंशुकमुख |
१३४ |
२०५
|
किंशुकाद्गच्छ मातिष्ठ |
५९ |
६३
|
किंशुकाद्गच्छ मातिष्ठ |
१३३ |
२०१
|
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विषयाः |
पृ. |
श्लो.
|
किंशकान्योक्तयस्तद्वत् |
१७९ |
१६
|
किंशुके किंशुकः कुर्यात् |
५९ |
६४
|
किंशुके किं शुकः कुर्यात् |
१३३ |
२०२
|
कीटगृहं कुटिलोऽन्तः |
७६ |
१०
|
कुक्कुटान्योक्तयो ज्ञेया |
५४ |
२४
|
कुद्दालेन विदारणं |
१४९ |
६७
|
कुमुदशवलैः फुल्लाम्भोजैः |
४१ |
२८
|
कुरु गम्भीरांशयतां |
१०१ |
७४
|
कुर्वन्तु नाम जनतोप्रकृतिं |
१२९ |
१६९
|
कुर्वन्षट्पदमण्डलस्य |
११० |
३३
|
कुसुमं कोशातक्या विक- |
१२३ |
१२५
|
कुसुमं पुनरबहुफलं |
१९० |
२६
|
कुसुमस्तवकैर्नम्राः |
१२६ |
१४९
|
कूपप्रभवानां परमुचि |
१०४ |
९१
|
कूपे पानमधोमुखं |
७३ |
१७२
|
कृष्माण्डीफलवत्फलं |
१२० |
१०४
|
कृतकृत्यंमन्यः स्यात् |
१७ |
१४२
|
कृत्वापि कोशपानं |
७९ |
२८
|
कृष्णाय प्रतिपादयन् |
९९ |
५२
|
कृष्णं वपुर्वहतु चुम्बतु |
६७ |
१२४
|
केका कर्णामृतं ते |
६९ |
१३८
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के के तमालफल साल |
११५ |
६४
|
केचित्कण्टकिनः कटुत्व |
११४ |
५६
|
केचित्पल्लवलीलया |
१२२ |
११३
|
केचिल्लोचनहारिणः |
११५ |
६७
|
केतकीकुसुमं भृङ्गः |
७९ |
३५
|
केतकीकुसुमम् भृङ्गः |
१२६ |
१५१
|
केनासीनः सुखमकरुणं |
९१ |
४६
|
केनापि चम्पकतरो वत |
११८ |
८५
|
केलिं कुरुष्व परिभुङ्क्ष्व |
३२ |
६१
|
केवर्तकर्कशकर |
४७ |
७२
|
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