सू श्वोभूते पौर्णमासेन ष षट्कृत्वो द्वेष्यस्य षष्टिाध्वर्यो (इ) स संक्रामेसंक्रामे वज्रम् संजानाथां द्यावापृथि सं तिष्ठते दर्शपूर्णमा संततमन्वाहेतिसा (इ) संतिष्ठते दाक्षायण पिण्ड पितृयज्ञे "" संनयतः पलास संप्रैषान् कुर्वन्ति संब्रह्मणा पृच्यस्वेति संभेदाद्वितीयम् संयज्ञपतिराशिषेति संयावः प्रियास्तनुव संवत्सरं परार्ध्य संवत्सरे पर्यागत संवपन् वाचं यच्छति संविशन्तां दैवी संस्थाप्य पौर्णमासीम् स उत्करः सकृदुपस्तीर्य द्विरा सकृत्फलीकरोति सद्यो वा सद्यस्काला सप्त ते असे समध संप्तदशसामिधेनीको मिधेन्यः 99 समं मूलैर्जुहा ADAINTH A VOT T वर्णक्रमेण सूची पृ 594 653 112 300 | सर्वत्रैवमतप्रत्या 153 सर्वत्र पुरस्ताद्या (इ) 248 | सर्वमप्यौपासनमा 62 | सर्व लूत्वा देव बाह्रै 100 | सर्वाणि नित्यवदेके 615 सर्वान् वा ब्राह्मणः 302 | सर्वान् वैकध्यम् 569 | सर्वेष्वामन्त्रणेष्वेवम् 185 स वाजिनो (इ) खलु 43 IN सू सम बिलं धारयमाणो समवदाय दोहाभ्याम् 527 समानजातीयेन 448 | समानतन्त्राणि नाना समातन्त्रमेके स समानमत ऊर्ध्वम्. 256 | समायुषा संप्रजये 289 | समारभ्योर्ध्वो अध्व 441 | समानवनन्तर्गभ 311 279 203 181 340 81 496 समावप्रच्छिन्नायौ द 74 समित्सु तिस्रो वत्सतरी समिध आद्धातीत्येके 553 समिधानिं दुवस्यतेत्येषा 496 147 समिद्धो अग्न आहुते 20 537 195 425 543 240 समिद्धो अग्ने मे दीदिहि 418 | समुद्रादुर्मिर्मधु 512 | समुद्धतस्याशीघ्र 607 | समूलानामृतेऽम् 576 | समूहन्त्यग्न यगारम् 155 47 56 138 सर्वकामो वा सर्वमाग्नेयं भवति ट 174 229 143 564 300 334 295 616 209 452 489 40 475 371 215 345 446
पृष्ठम्:आपस्तम्बीयं श्रौतसूत्रम्.djvu/७८९
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति