पृष्ठम्:आर्यभटीयम्.djvu/53

एतत् पृष्ठम् परिष्कृतम् अस्ति

आर्यभटक्रतम्

आर्यभटीयम्

सुर्यदेवयज्वप्रव्णीत-प्रकाशिका-व्याख्योपेतम्

व्याख्यातुरुपोद्घात:

[]नमामि परमात्मानं स्वतःसर्वार्थवेदिनम् ।
विद्यानामादिवक्तारं निमित्तं जगतामपि ॥ १ ॥

नमः सकलकल्याणगुणसंवास[] भुमये ।
निरवद्याय नित्याय महसेऽस्तु महीयसे ॥ २ ॥

[]त्रिस्कन्धार्थविदा सम्यक् सूर्यदेवेन यज्वना ।।
संक्षिप्यार्यभटप्रोक्तसूत्रार्थेऽन्न प्रकाश्यते[] ॥ ३ ॥

आर्य०-१
 

व्याख्या–

  1. Mss. used : A. C. 245 (= T. 24); B. 5957-B; C. C. 2320; D. C. 2475-A; E. C. 2121-C, all deposited in the Kerala Univ. Or. Res. Inst. and Mss. Library, Trivandrum, Kerala.
    D. A of the Introduction upto व्याचिख्यासितम् , (p. 5, line 8, below) lost. E. omits the first intro. verse.
  2. E. संवाद
  3. E. Gap for त्रिस्कन्ध to संक्षिप्या, next line, but the omission is supplied in uninked writing by the reviser, obviously from different ms. Short gaps and fillings of a similar nature occur elsewhere also, but they are not indicated in this edition unless warranted by any special reason.
  4. B. सूत्राथ (? र्थः) प्रत्यकाश्यते।