पृष्ठम्:चतुर्वेदी संस्कृत-हिन्दी शब्दकोष.djvu/२०

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

श्रति कोष १६ अतिव्याप्ति (स्त्री.) अधिक विस्तार अत्यन्त | विस्तृति | नैयायिकों के एक दोष का नाम । यदि किसी का लक्षण - अर्थात् एक प्रकार की परिभाषा किया जाय और वह लक्षण अपने मुख्य वाच्य को छोड़ कर दूसरे का वाचक होजाय । तो वहां अति- व्याप्ति दोष माना जाता है । अतिशक्ति, ( स्त्री. ) अधिक शक्तिवाला | बलवान् । असीम बलशाली। जिसके समान शक्ति औरों की न हो । (पुं.)। अधिकता | बड़ाई | अतिशतिः (त्रि.) अधिक | अतिक्रान्त | अधिकतायुक्त | अतिशयोक्ति, ( स्त्री. ) अर्थालङ्कारविशेष । वर्णनीय वस्तु की उत्कर्षता दिखाने के लिये उसे दूसरी वस्तु के रूप में प्रकट करना । अतिशक्करी, (सी.) छन्दविशेष | जिसके प्रत्येक पाद में १५ अक्षर होते हैं । अतिशायन, ( न. ) अधिकता प्रक अतिशीत, (न. ) अधिक शीत । अधिक ठण्ढा । ( त्रि. ) वह वस्तु जिसका स्पर्श बहुत ठरढा हो । प्रतिशोमन (त्रि.) यन्त शोभायुक्त | श्रति- शय शोभनीय । श्रेष्ठ | उत्तम । रमणीय श्रतिसन्ध्या, ( स्त्री. ) प्रदोष काल | सन्ध्या के समीप का समय तिसर्गः, (पुं.) सेच्छापूर्वक काम करने की थाज्ञा । अतिसर्जन, (न.) देना मारना ठगना । छोड़ना । अतिसायम्, (घ) सायंकाल के समीप | प्रदोष का समय । r प्रतिसार, (पुं.) रोग विशेष | अतिसार रोग | अतिसार किन्, (त्रि. ) अतिसार रोगी | श्रतिगार रोगवाला अतिसृष्टः, (नि.) दत्त दिया हुआ नियुक्त किया गया । दिया गया। भेजा गया। a अत्यन्त मोटा । अतिसौरभः, (पुं. ) या संगन्धिवाला । अतिस्थूलः, ( त्रि. ) आवश्यकता से अधिक मोटा । अतिहसितम्, ( न. ) अतिशय हास्ययुक्त । अधिक हँसने वाला | अतीत, (त्रि.) व्यतीत | बीता हुआ । बति गया। भूतकाल । अतीतकालः, ( पुं. ) हेत्वाभासविशेष | ऋतु- मान के द्वारा किसी पदार्थ के साधन समय नीत जाने पर उसके साधन के लिये जो हेतु कहा जाय वह अतीतकाल हेतु कहा जाता है और वह हेलाभास दोष है । · द्र विशेष बहुत (त्रि.) इन्द्रियों से न जानने योग्य वस्तु । श्रप्रत्यक्ष अतीव (अ.) बहुतही। अत्यन्त । अधिक | अतिशय । अतीसार, (पुं० ) रोग विशेष | उदर रोग | स्वनामख्यात रोग | . अतुलः, (त्रि.) धनुपम उपमान रहित । अतिका, ( स्त्री. ) बड़ी बहिन | इस शब्द का प्रयोग नाटकों में किया जाता 1 अत्यन्तम् (न.) अतिशय । अधिक। सीमा को अतिक्रमण करने वाला । अत्यन्तकोपन, (त्रि.) चण्ड। अधिक कोष- शील। अधिक क्रोध करने वाला । अत्यन्तगामी, (त्रि. ) अधिक चलनेवाला । सततगामी हरकारा अत्यन्तसंयोग, (पुं. ) समस्त सम्बन्ध | निरन्तर संबन्ध । श्राप में मेल-मिलाप | जिस प्रकार धूम और अग्नि का सम्बन्ध है, दो पदार्थों का आपस में ऐसा मिल जाना कि दोनों के मेल से एक दूसरा पदार्थ उत्पन्न होजाय | अत्यन्ताभावः ( पुं. ) नैयायिकों के मत से अभाव का एक भेद । किसी वस्तु का