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जन्मषत्रदोषकः जायघटा देने) से जो शेष दिनादिक बचे, वह ‘क्ति अधिक हो ( अर्थात् पंक्ति में इष्ट घट|न से शेष बचा हे ) तो यातविख ( या ऋण चालन ), इष्टकालअधिक हो ( अर्थात् इष्टकाल में पंक्ति घटाने से शेष बचा हो ) तो ऐष्यदिवस ( या धनचालन ) कहलाता है । भात ( ऋण ) अथवा पेष्य ( धन ) दिवखदि से पञ्चाङ्ग में लिखे स्पष्ट प्रह की गति को गोमूत्रिकागणितद्वारा गुण करके ६० का भाग देने से जो लब्ध अंश, कला, विकलादि मिले उस को क्रमसे पञ्चाङ्गस्थितस्पष्टग्रह की रश्यादि में घटने और जोड़ने ( अर्थात् यदि यातदिवसादि ' हो तो लब्ध अंशादि को १ङ्गाङ्गस्थस्पष्टग्रह की राश्यादि में घटाने और ऐष्यद्विखादि हो तो छब्ध अंशादि को पञ्चाङ्गस्थरपटुग्रह के राश्यादि में जोड़ने ) से तात्कालिक स्पष्टग्रह बन जाता है । वक्र प्रह और राहु-केतु में उळटी क्रिया करने से ( अर्थात् ऋए चाठन हो तो वक्री-राहु-केतु में जोड़ने से तथा धन चाञ्ज्ञ हो तो वक्री-राहु–केतु–में घटाने से ) स्पष्ट होता है ।। २-३ ॥ उद्वाह्णः औबिक्रमर्कसंवत् १९९१ श्रीशालिवाहनशकाब्द १८६६ शुद्धवैशाख कृष्ण ! पञ्चमी ४९ । ४४ बुधवार अनुराधानक्षत्र २९ । १४ सिद्धियोग ७ । १८ इसके बाद व्यतिपात योग सामयिक कौलवकरण १८१३ में किसी का जन्म हुआ । उस समय सूर्योदयकाल से गत १३ । ९६६ सFघनेष्टकार, अनुराधनक्षत्र का भयात ४६ । ६६ और भभोग १७१४ है । और उस दिन tदनमान ३०६० राश्रिमान २९१० और उसके समीप गुनुवार को ४६११८ मिश्रमान है । यहाँ वारादि साधनेष्टकाल ४।१३।६६ से वारादि पैकि १४९१८ आगे है। इसलिये बारादि पंक्ति में आपदि साचनेषु काल घटया तो शेष = ( १४९१८ )-(४१३।१९ )= १३२३ वारादि ऋण चालन हुआ । इख अरुण वाहन १।३२३ से 'किस्थ सूर्य की स्पष्टा गति ६९० को शुणन करने चयदयघण्वमिनिट को घटा कर जो शेष बचे उसको ५ से गुणा करके २ का भाग देने से लक्ष घटीपल सावन इष्टकाल होता है । मध्याह्नोत्तर निशीथ ( आधीरात ) के भीतर का जन्म हो तो जन्मकालीनं हौरादि समय को ५ से गुणा करके २ का भाग देने पर जो लब्ध घटीपल आवे उसको दिनची में जोड़ देने से घुटादिक सावनेष्टकाल की जाती है। निशीथ ( आधीरात ) के बाद सुप्रैबिम्बाघदय के भीतर का इष्टष्टयादि आतना हो तो जन्मसमय के वण्यमिनिट का पूर्ववत् पटीपल बनाके उस दिनमान और रात्रिंबल के मोम की ( अथवा दिनाघटी तथा ३० घटी के योग मैं ) जोड़ देने से पूर्वसूर्यबिम्बानदय अग्भसमय से न स्तवन काल शैला है।