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८: eद्५७ • इतरा क्रान्ति है अतः १६ घटी में चर पल ११११ कां जोड़ देने से डमदिन कझकसे का दिनार्ध = १६१९५१ उस दिन पञ्चाङ्ग से काशीका दिनर्ध= १६ २९० दोनों का अन्तर = ०६९ काशी के दिनार्ध से कळकत्ते का दिनहुँ छोटा है इस लिये यह अन्तर कर्ण हुआ । यदि कलत्रों का दिनहुँ बड़ा होता तो यहां अन्तर धन आता और कलकत्ता काश से पूर्व है इसलिये देशान्तर पल ६६० धन हुआ । काशी से पश्चिम देशों का देशान्तर ऋण होता है । अब पञ्चाङ्गस्थ तिथ्याभिमान में संस्कार करने से कलकत्ते का तिथ्यादि न-- पद्माङ्गस्थ तिथि-४६ ।४४।० १ नक्षत्र= २ ५।१४।० | योग= ७।१८१० दिनद्धन्तरः = - ०९।९ १९ ०९९ देशान्तर = + ०।१६१० = + ० ।६१। ९ = + ०९९० कलकत्तेकीतिथि८४६ ३३।६१ = २६।३६१ ८७१६१ यहू ६१ विपक के स्थान में १ पळ मान लिया तो कळकर्ते में पञ्चमी=४६।३४ अनुराधानक्षत्र = २६४ व्यतिपात योग = ८८ हुआ । अन्यदेशीय स्पष्टप्रह बनाने की रीति-- यदि कशी से अन्यत्र का प्रहस्qष्ट बनाना हो तो काशी के घन ऋण वादि चलन में देशान्तर और चरान्त का विपरीत संस्कार करने से तत्तद्देशीय धन ऋण चाछन होता है। उस पर से उपर्युक्त विधि से तत्तद्दे . शय स्पष्ट ग्रह बन जाता है। भयात-भभोगानयन --- गतसँघटिका खाङ्ग६०शुद्धा स्वेष्टघटीयुता । भयातं स्याद्भोगस्तु निजसैंघटिकायुता ॥ ५ ॥ चेद्यातधीषी स्वेष्टात्पूर्वमेव समष्यते । । तदेष्टकालात्सा शोध्याऽवशिष्टं भगतं भवेत् ॥ ६ ॥ गतभी क्षयसं चेत्कार्यंतझघडी तदा । तपूर्व‘घटीयुक्ता शेषं पूर्ववदाचरेत् ॥ एवं भद्धौं भयातदि विज्ञेयं स्वधिया बुधैः ॥ ७॥ यदि गतनक्षत्र का अन्त पूवंति में होता हो तो गतनक्षत्र के मान (घटी-पल ) को ६० घटी में घटा कर जो शेष बचे उसमें इष्टकाल जोड़ देने से भयात होता है। और उसी शेष में वर्तमान नक्षत्र के घटी-पळ को जोड देने से भभोग हो जाता है।