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वैस्तुरखंवत सोदहरण-‘सुबोधिनी’ संस्कृत-हिन्दी टीका। स परीक्षोपयोगी विविध परिशिष्ट सहित । आज तक इस प्रन्थ की कोई भी ऐसी सरल टीका नहीं थी जिससे परीक्षार्थी विद्यार्थी सुलभता पूर्वक इस्र प्रन्थ का आशय समझ सकें ? अतः इस अभिनव संस्करण में अवतरण के साथ २ प्रत्येक लोकों की परीक्षाएयो उदाहरण सहित संस्कृत हिन्दी टीका, नाना चक और अन्त में वास्तुपूजाविधि, इप्रवेशविधि, गृहोपरि गृध्रादिपतनशान्तिबिधि आदि अनेक परिशिष्ट दिये गये हैं । १) सशसंहितेत-भृगुसंहितेक- भावफलाध्यायः ‘सुबोधिनी’-‘विमल भाषाटीका सहितः । • वर्तमान युगमें महर्षि लोमश प्रणीत ‘लोमशसंहिता तथा महर्षि भृगु प्रणीत ‘भृगुसंहिताओं का कितना यथार्थ फळ घटता है; यह बात सर्व विदित है । इन्ही उपर्युक दोनों महान् प्रन्थों के पार भूत प्रस्तुत भावफलाध्याय B नामक ग्रन्थ है । आज तक प्रायः इसका विशुद्ध संस्करण अप्राप्य ही था, जन साधारण की सुभीता के लिये महर्षि लोमश प्रणीत ‘भावफलाध्याय तथा महर्षि भृगु प्रणीत भावफलाध्यायः नामक दोनों प्रस्थ एक ही जिद में प्रकाशित कर दिये गये हैं। जातकपारिजातः-(साचित्रः ) ‘सुधाळिन' विमल' संस्कृत-हिन्दी टीकाद्वयोपेतः परीक्षोपयोगी ठरल संस्कृत-हिन्दी टीका, उपपत्ति तथा पदार्थनिर्देशक नाना चित्र-चक्र आदि विविध विषयों से विभूषित सर्वे गुणोपेत यह अभिनय सर्वोत्तम झुइव संस्करण प्रथम बार ही प्रकाशित होकर संस्कृत संसार में उथल पुथल मचा रहा है। कठिन परिस्थिति के कारण इडकी बहुत कम प्रतियों छपी हैं अतः परीक्षार्थी त्रियाथ शीघ्र भंग कर लाभ उठावें । ‘सुबोधिनी’ भाषा टीका सहितम् । यदि आप रमगर्भा भगवती वसुन्धरा के गर्भ से अमूल्य सहरकों का उपलब्ध करने में रुचि रखते हों तो महर्षेि लोमश प्रणत इव ‘‘धराचक्र नामक पन्थ के प्रस्तुत संस्करण को एक बार अवश्य देखिये । तवावृतभाष्योपपत्त-टिप्पणीभिः सहितः । पूर्व प्रकाशित सभी टीकाओं के गुण दोयों की समालोचना करके प्रस्तुत संस्करण प्रकाशित किया जा रहा है । बड़े बड़े विद्वानोंने उपर्युक तत्वावृतभाष्य को निरीक्षण करके मुळ कण्ठ से इसकी प्रशंसा की है । सूर्यसिद्धान्त का ऐसा श्रीडनीय संस्करण यह प्रथम बार ही प्रकाशित हो रहा है शीघ्र प्राप्त होगा । प्राप्तिस्थानम्--चौखस्य संस्कृत पुस्तकालय, बनारस सिटी।