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अस्मथश्च६षक अक्षांशपर से स्त्री द्वारा पलभज्ञान की विधि पञ्शतश्चेदधिकं कळघं व्यतीतभोग्याक्षश्रमान्तरमस् । षष्टश्च हृतं तस्फच्युत यऽक्षो भवेदसऽभिमता सुट्टीए ११२ रात अंश और ऐण्य अंश सम्बन्धि पलभाओं के अन्तर को शेष कला से गुण कर के ६० का भागदेने पर जो लब्धि आत्रे उस्रको गत अक्षांश सम्बन्धी पळभा में यथास्थान जोड़ देने से अभीष्ट पळभा हो जाती है ..११।। उदाहरण अयोध्या के अक्षांश २६°४८ पर से पलभाज्ञान करना है तो आगे दी हुई पलमा सारिणी में २६ अक्षांश का फल १६१७ एंव २७ अक्षांश सम्बन्धी फल ६६ १० इन दोनों फलों के अन्तर ( ६६।९० )-(५५१७ = ०१६४३ को ४८९ से गुणा करके गुणनफळ =४८ ( २।१९।४३ ) = ७९४।२४ में ६° का भाग उषि= ईश्वर =१२।२४=आई । इसको गतांश सम्बन्धी पलभा १९१७ में जोड़ दिय तो स्वल्पान्तर से (६ ॥३७१ =६।४ अयोध्या की अक्षु कामिका पल्लभा हुई। इसी को अक्षभा या विषुवती भी कहते हैं। दिया तो = न पलभसारेण |अंश } पलभा अंश | पलभा । अंश { पलभा / अंश | पलभा। १ | १२३४ ॥ १५ १ ३।१२५४ | २९ । ६।३९। ४ } ४३ | १११११। २४ २ \ ०'२५ ९ १६ \ ३।२६२४ | ३० | ६|५५।४१ ॥ ४४ | ११।३५२१ ३ \ ३७४४ \ १७ १ ३।४० ! ५ ३ १ } ७।१२। ३६ ॥ ४५ ॥ १२ ०॥ ४ ॥ ।५०}२१ ॥ १८ ॥ ३५३ । ६ \ ३२ | २९५३ { ४६ ।१२।२५।३७ ५ । १ ३ ९ | १९ १ ४। ७५५ ३३ | ४७३१ { ४७ | १२५२ । ४ ६ | १ । १५। १४ ॥ २० ! ४२१ १ | ३४ | ८। ५३८ | ४८ | १३।१९।३४ ७ } १२८।२ ३ | २१ ४३६ । २२| ३५ | ८।२४। ७ | ४९ | १३।४८१८ ८ | १।४१। १० | २२ | ४|५°५३ | ३६ | ८I४ ४३ ५ | ५९ | १४।१८। ३ ९ | १। ५४।० २३ ३ ४ ५१३८ ॥ ३७ ॥ ९। २।२५ } ५१ ॥ १४४९। ८ १० २ ६५४ | २४ | ५।२०।३१ ३ ३८ ॥ १।२२।३० ॥ ५२ ॥ १५२१।३२ ११ १ २ १९५५ | २५ | ५ .३ २४२ ॥ ३९ । ९४३। १ | ५३ ॥ १५५५३० १२ | २।३३ । ० | २६ | ५।५१। ७ ४ ० | १०३३६ ॥ ५४ ॥ १६ ।३१। १ १३ ॥ २।४६।४१ | २७ ॥ ६। ६५° } ४१ | १०|२८४८ | ५५ | १७| ८१३४ १४ ॥ २५९।२८ ॥ २८ ६ ६। २२४८ ॥ ४२ । १०४८१८ लङ्कोदय पर से स्वोद्यज्ञान ( करणकुतूहळे ) लीदया नगतुरङ्गदस्रा गोळश्विनो रापरदा विनायः क्रमोक्रमस्थाश्चरखण्डकैः स्वैः क्रमोक्रमस्यैश्च विहीनयुक्तः । मेधादिषण्णामुद्याः स्वदेशे तुलादितोऽभी च षडुत्क्रप्रस्थाः ॥१२॥ २७८ पळ मेघ का, २९९ पळ वृष का, ३२३ पछ मिथुन का क्रमसे