पृष्ठम्:जन्मपत्रदीपकः.pdf/२७

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स्लट्झर्झटिप्पणीहन्दी टोकाट लहितः । && टोद्यमःन होता हैं : एवं उस्क्रस से ३२: पळ ऊर्फ द, २९ ३छ स्वकु, २४८ पल कन्या का लकंप्य न होत है । यी क्रम से दुट्टि ६ इंटका मान भी होता है ! इन मेषादि के लंकीय मानों को क्रनतथ{ उनकल स्से बे रखके उनके दलने मेषादि के रखण्डों को इडी रीति { त्रु तथा उस्क्रम ) से रक्षा के पहले : स्थानों में घटा देने से फिर ३ स्थानों में जोड़ देने से मेषादि ६ राशियों का स्वोदय न हो जादा है। इन्हीं को उलटे तुळादि ६ राशियों का स्थान समझने चाहिये आजमगढं को उद्यमन लङ्कांद्य चर २७. •t»५८ -२२० मेप, मीन २९९-४७ = २५२ वृष, कुंभ ३२३-१९ मिथुन, मकर ३२३ + १९८३४२ क; धन २९९ +४७ = ३ • ६ सिह, वृश्चिक २७८+५ = ३३६ कन्या, तुळ अत एव मदीयं पद्यम् शून्याश्चित्रा यमवरुणस्य वेदाञ्जरासा यमवेशमाः । तक़ब्धिराम रसराम्ररमा नेयावितस्तौळित क्रमात्युः १२ अयनांश बनने की रोति नेत्रवेदो ४२१ नशकः स्वदक्षांशविीनितः । षट्था भक्कोऽयनांशाः स्युर्वर्षारम्भे स्फुटः खखें ॥१३॥ त्रिनाऊँराशिना स्वाधंयुक्तेन विकलादिना । युक्तस्तास्कालिकास्ते स्युः स्पष्ट गणितविद्वर ॥ १४ ॥ व मान शकाब्द में ४२१ बट के जो शेष बचे उस ( शेष ) का श्वां भाग उसी में बटा कर ६० का भाग देने से लब्धि वर्षारम्भकालीन ( मेष संक्रान्ति के दिन का ) स्पष्ट अयनांश होता है । यदि सूर्यों की राशियां भी बीत गयी हों तो राशि संख्या को ३ से गुण करके उसमें उसी का आधा जोड़ने से जो बिकला हो उसको वयरः काळीनु स्पष्टायनांश की विकडा में जोड़ लेने से तास्वद्धिक स्पष्टायनांश हो। जाता है ।। १३-१४ ।। उद्धरण वर्तमान शकाब्द १८६९ में ४११ घटाया तो १४३४ शेष बचा। इस १४३४ में इसी १४३४ का दशमांशः = =१४३।२३४ वटा के ६० का भाग दिया खो १४३४

  1. सौरास्मक शकाब्द मेषसंक्रान्ति से प्रारम्भ होगा । अतःगत शकण्द से दो अयनांश का

उदाहरण दिया गया है । इसी भाँति सर्वत्र चन्द्रत्रस्सरारम्भ हो जाने पर सौरवरसरारम्भ से पूर्व का इष्टकाल झे ते करना चाहिये।