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२.५ जलवत्रीषड्-- १४३५–(१९३२ १३ १३९०६३६ लज़ेद == - = २ १३८९,३६// शारम्भ्रफल = € ¢ २०० ४ ० ० स्पष्ट अन्न हुन अत्र स्पष्ट झ्र्च १९११९९११९१२ n को राशि संख्या - ३ ४ । ३ ३ भ्रूण करें ईद ३ ३४ १ १= ३३ हु क" ’ इव ३३ मैं इसी अध ३ ३ १s जोड़ दिया सं ९० बिकल " हुई। इस १९ विकल को वर्षारम्भका?ीनरूपष्टयनश२ ३°३ १३६ मैं यथ स्थान जोड़ दिया तो नस्तलिक़स्पष्टायनश २ १°३१ १२६* हुआ । अयनांश बनाने की दूसरी रीति-- भूने वेदोनशकस्मिन्नः खघ्राश्विभिहृतः । बबरम्भेऽयनांशः स्युः फुटा गणित कोविदः । भागीकृतो भो भक्तः खभ्रवेदैः फलं भवेत् । कळाड़ी तेन संयुक्ताः स्फुटस्तात्कालिकाः स्मृताः ।। दूस्सरः सेनि के अनुसार बदण- इक में एश १८६१ में ३२१ घeत्रः ते १४३४ शेष हुआ ! । इस १४३ ४ को ३ से गुणा करके २०० से भाग देया तो लब्धि८१५३६*३= २१३०१३६ कारभकाल का स्पष्टयनांश हुआ । अब स्पष्ट सूयं ११।२०।१२ का अंश ३६ १ ३६१ बमाके ४७० का भक्षण दे दिया तो कघि== ०६३ कळदि हुई । इस • १६३९ को वर्षारम्भकान्त्रिकल्पययन नै यथा स्थाओं जोड़ दिय७ ते २१°३०1३६४ + ०*१ ६ ३=१ ११३१।२९/ वस्फालिकपटयश हुआ? ? लग्न स्पष्ट करने की रीति तात्कालिक सायनभागसूर्यः कथंस्तथा तद्तभोग्यभोगाः । स्त्रीयोदयना विहृताः खरामैर्छब्धं विशोध्यं घटिकापलेभ्यः॥१५॥ यातैष्यकान् राश्युदयान् ततश्च शेषं वियद्राम३०गुणं विभक्तम् । अशुद्धराशेरुदयेन, लब्धमशुद्धशुद्धऽजपुखेषु भेषु । हीनं युतं तद्धि भवेद्विलग्नं स्पष्टं स्वदेशेऽयनागहीनम् ॥ १६ ॥ जिघ्र स्खमय लग स्पष्ट करना हो उस समय के स्पष्ट सूर्यो में वाल्कालिक स्पष्टायनांश जोड़ डैने से तात्कालिक सायनार्क होता है। उस ताकालिक स्वायनार्क के भुल या भोग्य अंशादि को स्वदेशीय उद्यमान से गुणा करके ३० से भाग देने पर छब्ध पछादि मुक्त या भोग्य काल होता है। ( अर्थात् भुल को स्वोद्यमान से गुणा करके ३० से भाग देने पर भूतकाल और भोग्यांश को स्वोदय से गुणा करके ३० से भाग देने पर भोग्यकाल व है) । इ४ शुक्ल या भोग्य काळ को इष्ट घटो पल में घट के जो शेष बचे उसमें भुछ या भोग्य राशियों के उद्यमानों को ( जहाँ तक घट सके)

  • पहले अयनांश से यह मिस्रइसलिये हैं कि इसमें अंश सम्बन्धी फल भी ले लिया गया है।