पृष्ठम्:जन्मपत्रदीपकः.pdf/३६

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द जल्पश्रद्धयकः नतोन्नतज्ञान-- तदुन्नते यदल्पं स्याद्द्युनिशगतशेषयोः । तेनोनितं दिननिशोरद्वै तत्रतसंज्ञकम् ॥ १९ ॥ दिन रात्रि दोनों की गतघटी और शेषघट इन दोनों में जो अल्प ( कम ) है उसको उन्नतकlछ कहते हैं । उस उन्नतकाल को दिनदळ या त्रिदल में घटा देने से शेष नप्तकाल होता है ।। १९ ।। उदाहरण सावन इष्टकाल १३६६ और दिनमान ३०६० है । यह दिनशेष १६९९ ले सिँचाइ १३.५६ कम है । इसलिये द्विनगत ही उन्नतकाल हुआ । इसको दिनदल १९३१ में घटा दिया वो शेष १९३६-( १३९९ ) = १।३० दिन का बव्यादि पूर्वंनत काल हुआ । दशमसाधन की रीति पञ्चकृतारपूर्वेषश्चन्तालङ्कवेदयैश्च यत् । शुक्तयोग्य प्रकारेण लयं तद्दशमाभिधम् ॥ ततश्चतुर्थे विज्ञेयं मध्ये षड्भाधिके कुते ॥ २० ॥ पूर्वे नत हो तो छछूदय पर से मुक्त प्रकार द्वारा तथा परनत हो तो लकृदय पर से भोग्य प्रकार द्वारा पूर्ववत् लग्न साधन करना, तो वही शमलन होगा । ठEमें ६ राशि जोड़ देने से चतुर्थ भाव हो जाता है। ( यदि रात्रि का नत काल हो तो सूर्यो में ६ राशि जोड़ के शेष क्रिया पूर्ववत् करनी चाहिये ) ( २० ।। उदाहरण आयनखुर्च = ०१२°१९३९ शुक= १३°१९९२९ भुकश x लङ्कोदय_(१२।२९२९ ) २७८ // ३० २७८ ३४७२।३६।२२ = = १११।४१।१२.४४ यह पलादि भुक्तंकाळ पूर्वंनतपत ९० में नहीं घटत इस लिये १७ वें श्लोक के अनुसार नंतपल ९० को ३० से गुणा करके मेष के लझेद्यमान २७८ से भाग ३० ४ ३ ° देने पर लब्धि = '= ९।४२।४४। अंशादि । हुई । इसको स्पष्ट सूर्य में चखांया तो दुशम मन रूपष्ट = ११।२०°५८१० }. -९°।४१/।४g =१११११°१९ १९११६” हुआ । सब देशों के लिये केवल सारणी पर से दशमलन सधन की रीति दृश्याकडठिकाधं यत्पूर्वापरनतोनयुक् । तज्जं भाषं चलांशोन खर्भ सार्वत्रिकं भवेत् ॥ २१ ।।