पृष्ठम्:जन्मपत्रदीपकः.pdf/३७

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

लोदाहरणरुटिपहिश्दी टीका सहितः । २३९

दृश्य सूर्यं ? सायन सूर्य ) के रात्रि-अंश के खEने के कोठे में जितना घवी पर ही उस को एक स्थान में रखते, जैशिद्ध गणित द्वारा कल बिकल सम्बन्धः पल का आनयत के पूर्व केथडि बढ एल में स्था स्थान रख कर जोड़ दैवे। उसमें यदि पूर्वनन इ = नतकाळ को घटके परनत हो। ते कंट्र के जो कट्यहि प्रश्न है उसमें वायरी में मिले ईजल राशि-अंश के सामने का यही पल घट जाय उतने रसशि अंश दश दद्धन कं स ह ते हैं। फिर बढ़ने पर जो शेष बचे उस पर ले गैर शिक गईएम दूर कळ विकल क ? आनयद करके यथ{ स्थान यू ग्रहास राशि। अंश मैं जोड़ देने से सायन दशम लग्न होता है। उहमें अयनश्च घट देने पर स्व देश के के लिये दशम लग्न श्पष्ट हो जाता है । २१ / उदाह-- लायन स्सूर्व ०१२° २९°३१” के राशि और अंश के सामने के बव्यादिफळ ११११११२ में त्रैराशिकगणितद्वारा 'आनीत कळाविकतासम्बन्धी पलादि फल ( पटादि = १११६ ) ( २ ९९.१६५ ) ( ९.१६ ) १७६९ // AN ६०२ १६ ३ ९ २४४ === ४।३३।१२१४४ को यथा स्थान रख कर जोड़ ड़िया ३६०° ११ १।१२ ४ ३ ३ ११ २ ४४ तो सायन सूर्य के राश्यादि सम्बन्धी बयादि फळ=१।६२४६१२१४ - हु । इख में बय्यादि पूर्ववत को घाय तो शेष = (१६५१४९।१२।४४)-(११३ २} = •}२१ ।४९।१२४ ४ बच । इस में ९ राशि २ अंश के सामने का घब्यादि = ०१८१३३ बढत है। अत: ० राशि २ अंश सायन दशम हुआ । और घटाने पर- १२९४११२६४ ७ |१८३२ ७१३।१२१४४ पलादि शेष बैच । फिर इसपर से त्रैराशिक गणित द्वारा जो कलादि ६०'(७।१३। १२४४) फल = ४१६ २५ ९९२४४


४६४१

१९६ -" आया उख को राषयादि सायन दशम के आगे यथा स्थान रख के अयनश घटा दिया तो राधयदि स्पष्ट दशम कम = ०३°४६'४६"--(२१/।३१।२e") = ११११११६/१६ हो गया।