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३२ जन्भयत्रQषक "= बिना नलकालके ही दशमदग्नस्तव मा प्रका? मेषादियुद्धोदययुक्शेषाच्छोध्या स्थूणादिः लकलेदयास्दनः शेषं वियत्र मेंश्च सङy = ; २२ ।। अशुद्धलङ्कोदयकैर्युतं लब्धं कादिकम् । मेषादियुद्भैर्युक्तं बली शोनं भं भवेत् ।। २३ शेज पळादि में श्रेय दे लेकर शुद्ध राशितक के स्वोद्यमानों को जोड़के जितना पछादि हो अक्षरों मकरादि ले लझदय लाने को जहाँ तक घट जाया घटा दैवे जो शेष बचे उसके ३० चे गुण करके अशुद्ध लङ्कोदय मान से भग दैने पर जो अंशादि लुब्ध हो उसमें मेषादि शुद्ध छक्केघ्य रश्रि संख्या को जोड़ के अयनांश घer ने से स्पष्ट दशमलन हो जाता है |२२-२३। । उदाहरण १५-१६ वें श्लोक के अनुरूए जो य प्रकार से ध्यानीत अशुद्ध राशि १ कर्क है कथं शेष = १९° ३६।१२। ४० मेष, वृष और मिथुन के स्वोदय पलः = २२०+ २१२ + ३०१ = ७७६

शेष पादि + मैय+ दृष+मिथुन =( १६०३६।१३३० + ७७६

= ९ २६ ।३६।१२४० इस में मकर, कुम्भ और सीनके लदमन (३१ ३ + २११ + २५८ = ९००} को घटाने पर शेष=( ९२६।३६॥१३४० )- ९०० = २६।३६।१२।४० शेष « ३० _( २६।३६। १२४० ) ३२ अङ्खलकेदयमान = = - - - - - २ ७८ ७९८ । ६ । २P २४८ = ३° । १३ । १६ फिर शुद्धराशिसंख्य + लब्धाशदि = ०२°१६३११६ N/ अयनांश= २१°३१'१९" वयया खो स्पष्टशम =१११११।२०६हुआ । १२ भाव साधन अथ लमोनर्”स्य षष्ठांशेन युतं तनुः । सन्धिः स्यादेवमग्रेऽपि षष्ठांशस्यैव योजना ! २४ ॥ त्रयः ससन्धयो भावाः षष्ठांशोनैकयुक्मुखात् । अग्रे अयः षडेवं ते भार्धयुक्तः परेऽपि षट् ॥ २५ ॥ चतुर्थ भाव में लग्न को घटाने पर जो शेष बचे उसमें ६ का भाग मैना