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स्लोइरएटिपएहदो टीका सहितः । लद जो अंश िवे उसको छन में शेड़ हेने से छल की अनिष्ट होती है ; इदं चट्टां को तनुसन्धि में जोड़ देने में द्वितीयभावः द्वितीयशत्र में उसी पट्टैश् ी जोड़ने से द्वितीयभ:ब को सन्धि होती हैं । एवं आगे भी इस क्रम से उसी षष्ठांश को जोड़ देने से सन्धि समेत ३ भाव हो जाते हैं इसी पष्ठांश को ढक राशि में बढा कर जो शेष बचे उसको चतुर्थ भाव से आगे क्रमसे जोड़ने से आगे के भी सन्धिसहित ३ भाव बन जरते हैं । एवं इदं ६ भrत्रों में ६, ३ राशिः जोड़ देने के शेष भी ( सप्तम भाव से लेकर हृदभाव पर्यन्त ) ६ आद इन जाते हैं। २५-२५ ।। १ उदाहरण चतुर्थं भव ९ १ ११ * ! १६' ५ १६ ॐ र २ ४ १ १० को ज्य के शेष में ६ क भाग देने से ( ३. १११ // १६/ } -(२६२७°४१'०१e} लछ३ अंद = १ है : =१३°१६ १९४१ " यीश हुआ। इस पद्यांश को उपर्युक्त नियम से जोड़ दिया तो १२ भाव होगये । | प्रयन सं• द्वितीय सं० तृतीय सं० | चतुर्थे सँ e | पञ्चम सं० १ षष्ठ सै० == =

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२ १ १४ ४१ ५६ १२ १० ५१

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१ ४ २७ ११ २७ १ ४ १८ ४३ २८ १२ ५ १६ c = २ ३ "-- " - 1 = = = उप्तम सं० अष्टम सं० नवम ! • दशम | सं० एकाद. सं० द्वादश सं० ५ १ १ १ २१ १८ १४ २७ १ १ २७ १४ १८ ४१ | १६ | १२ | २८ | ४३ | ५९ | १५ ५९ } ४३ २८ { १२ ५३ १० | ५१ / ३ २ } १३ | ५४ | ३५ | १३ ६ ३५ ५४ | ११ ३२ ५१} विशेष ( श्रीपतिपद्धति से ) वदन्ति भावैक्यदले हि सन्धिस्तत्र स्थितः स्यादफलो ग्रहेन्द्रः । अनस्तु सन्वेगेतभानजात नागाभिजं चाभ्यधिकः करोति ॥२६ भावांशतुल्यः खलु वर्तमानो भावोद्भवं पूर्णफलं विधत्ते । भावोनके वाभ्यधिके च खेटे त्रैराशिकेनाऽत्र फलं प्रकल्प्यम् ॥२७॥