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३५ खोदहएखटिप्पणहिन्दी टोका सहितः । से भोजनं नृत्यलिप्सा च कौतुकं निद्रितेति च । पवर्ग स्वराङ्काख्यं भज्ञान शेषितं ततः ॥ ३२ ॥ आन्वदिषु क्रमात्पञ्चयुग्मनेत्राग्निसायकः । रामरमाब्धिभेदाश्च क्षेप्यास्तष्ठस्त्रिभिस्ततः ।। ३३ ॥ एकादिशेथे खेटानामवस्था त्रिविधा भवेत् । दृष्टिचेष्टा विचेष्टा च कथिता पूर्वपाण्डितैः ।। ३४ ४ बृह ब्रह. जिस नक्षत्र पर जो ग्रह स्थित हो उस नन्न की संख्या व ६ अंश की संख्या को गुणा करके राशि के जितने अंश पर प्रह बैठ हो त्र की को संख्या से भी उख गुणनफल को गुणा करे । फिर जन्म ७ सन् नों संख्या, इष्ट काल के गत घटो की संख्या और जन्मलन की संख्या इन दे के योग को उख गुणनफल में जोड़ के १२ ज भा देने पर ५गमन शेष बचे तो क्रमसे १ शयन्न, २ उपवेशन, ३ नेत्रपाणि, ४ प्रकाशन हcat, ६ आगमन, ७ सभाबसते, ८ आगम, १ भोजन, १९ ११ कौतुक और १२ नद्र ये बारह प्रहों की अवस्थायें होतीं हैं न के फिर शेष का वर्ग करके ( शेष को शेष से गुण के ) प्रसर्च ६,

  • स्वराङ्क को जोड़ के १२ का भाग हैं जो शेष बचे ३८में यू',

मल के ळिये २, बुध के लिये है, बृहस्पति छ; से भाग चन्द्स आर डैने पर १ शेष बचे तो दृष्टि, २ शेष बचे तो चेष्टा और ३ तो विजेष्ट नामको विशेष अवस्था भी होती है । लेख पूवांच कहा है ।। ३०-३४ ।। से और रेवती नक्षत्र पर सूर्य है तो नक्षत्रसंड्या २७ को अह की संख्या १ सूर्याधिष्ठित अंशकी संख्या २१से गुणा कर दिया तो ६६७ हुआ इसमें जन्मनक्षत्र अनुराध की संख्या १७इटुकल के संख्या १३ और जमर्रन की संख्या ३ के योग ( १७ + १३ + ३ = देव बचे जड़ के योगफळ = १६०+ ३३ = ६०० में १३ से भाग दिया तो १२ ३=१४४ इसलिये सूर्य की निद्वा अवस्था हुई । फिर शेष १२ का वर्णं १२*६को बना के इखमें प्रसिद्धनाक गोविन्दप्रसाद के आयक्षर स्वर १ ओ ) के अ* स शेप जोड़ के १४४ + ९ = १४९ बद का भाग दिया तो ६ शेष हुए । दिया तो (६) में सूर्य के क्षेपक १ को जोड़ के (१+३=१९ ) तीन का भा शेष बध इसलिये सूर्य की निद्वा अवस्था के अन्तर्गात डटि नाम कों ने हुई । इसी प्रकार चन्द्रमा इत्यादि की भ अवस्था बनानी चादिवे ।

  1. , इ, उ, ए, ओ इन पाचों स्वरों के क्रमसे १, २, ३, ४, ५ स्वराह देते हैं ।

र्वाचार्यों ने उदाहरण २७ ४ १४ २१ • गत बटी की