पृष्ठम्:जन्मपत्रदीपकः.pdf/४४

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ज्गन ईश्वकः-- अयन र 75 की ३८५४६ - ब्रू-- दीश’ स्वस्थः अङ्गदतः शन्ख दें.ऽरिषुःखितः । विळखे खल' शायर था खञ्च ’ भत्र’ । ३५ ।। उझ१ बेच दीप्तः स्त्रस्थः स्वझेऽधिमित्रभे । प्रदिवः मित्रभे शान्तः समरे दीन उच्यते ॥ ३६ • शत्रुभे दुःखितोऽतीव विकलः पापसंयुवः । खलः खलग्रहे श्रेयः कोपी स्यादर्कसंयुतः ॥ ३७ ॥ दीप्त, मथ, प्रमुदित, शन्तु, दीन, अतिदुखित, विकळ, खट, और ६ कोपी ये नव प्रकार के प्रह होते हैं। अपने उच्च में स्थित ग्रह दीप्त, अपन राशि में स्वस्थ, अधिमित्र की शशि में दिठ, मित्र की राशि में शान्त, वल की राशि में दीन, शत्रु के राशि में अति दुःखित, पापग्रह-से युत रहने पर बिक, पप ग्रह की राशि में रहने पर लख, और सूर्य के साथ रहने से कोपी ग्रह होता है । ३६-३७ ! पत्रधा मैत्री ( सारावली से ) व्ययाम्बुघनखा येषु तृतीये सुहृदः स्थिताः । तत्कालरिपवः षष्ठसप्तथैकत्रिकोटगाः ॥ ३८ ॥ । हितसमरिपुसंज्ञा ये निरुणनिरुक्ता हिततमहितमध्यास्तेपि तत्कालखेटैः। रिपुसमसुहृदाख्याः तिकाले ग्रहेन्द्रा अधिरिपुरिपुमच्याः शत्रुतश्चिन्तनीयः ॥ ३ ॥ तत्काल में १२।४।२१०११३ इन स्थानों में २हने वाले प्रह आपस में सित्र होते है। और ३M७८१९५ इन स्थानों में बैठा हुआ प्रइ शत्रु होता है। जो ग्रह स्वभाव से सित्र, स्म अथवा शत्रु हैं वेही यदि तस्काळ् में मित्र हों तो क्रम से तत्काछ में अधिमित्र, मित्र और सम होते हैं । अर्थात् स्वाभाविक मित्र प्रह तकाछ में भी मित्र हो तो तत्काछ में आधि मित्रस्वाभाविक सम प्रह यदि तत्काळ में मित्र होतो मित्र एवं स्वाभाविक शत्र, प्रह. यदि तस्काछ में मित्र हो तो ताकाठिंक सम कहा जाता है एवं जो प्रह. स्वभाव से शत्र सम या मित्र हैं वे ही यदि तत्काळ में शत्रु होजाएँ तो क्रम से उन्हें अधिशत्रुशत्र औरं खम नमझनत , चाहिये ।। ३८-३९ ।।