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अवशुद्धदृषदकः मङ्गळ, शुक्र, बुध, चन्द्रमा, जूर्य, बुध, शुक्र, मङ्गळ, गुरु, शनि, शनि और गुरु थे ग्रह क्रम स्खे मेषादि १२ राशियों के स्वामो हते हैं । अर मेषदि राशियों के अंशों के भी स्वामी होते हैं ।। ४१ ।। हरे रवीन्द्वोरसमे समे स्तः शशिसूर्ययोः। द्रेष्काणेशः स्वपश्वङ्कभेशः स्युः क्रमशः स्फुटः ३ ४२ ॥ विषम राशियों ( १३५७१९११ ) में पहले १५ अंश तक सूर्येकी फिर १५ अंश चन्द्रमा की एवं सम ( २४६।८।१०१२ ) राशियों में पहले १५ अंश तक चन्द्रमा की फिर १५ अंश सूर्य की होरा होती है । किसी भी राशि में पहले ऐनकाण ( १० अंश तक ) का स्वामी उसी का नामी दूसरे द्रेष्काण्ण ( ११ अंश से २० अंश तक ) का स्वामी उससे पञ्चमेश और तीसरे द्रेष्कण ( २१ अंश से ३० अंश तक ) का स्वामी उसखे नवमेश होता है । ४२ ।। समश -- लग्नादिसप्तमांशेशास्त्वोजे राशौ यथाक्रमम् । युग्मे लग्ने स्वरांशनामधिपाः सप्तमादयः ॥ ४३ ॥ विषम संख्यांक ( १।३५७९११ ) राशियों में उसी राशि से, खम संख्यक (२१६८१०/१२ ) राशियों में उस सप्तम राशि से खप्तमांश की गणना होती है । ४३ ।। नवमांश -- मेषादिषु क्रमान्मेषनक्रतौलिकुलीरतः। नवमांशा बुधैर्जेया होराशास्त्रविशारदैः ॥ ४४ ॥ मेषादि राशियों में क्रमसे मेष, मकर, तुला और कर्क इन राशियों से ( ३ अंश २० कला का ) एक एक नवमांश होता है ऐसा होशशास्त्र के जान कारों ने कहा है। मेरा दूसरा पद्य चरे स्वस्मात्स्थिरेवाङ्काद् द्वन्द्वे तपश्चमादितः । नवमांशाधिपतयो ज्ञेया जातकविद्वरैः ।। इति ।। ४४ ।। दुशमांश-द्वादशांश- ग्नादिदशमांशेशास्त्वोजे युग्मे शुभादिकः । द्वादशांशाधिपतयस्तचद्राक्षिवशानुगाः ॥ ४५ ॥ विषमराशियों में उसी शशि चे और समराशियों में उस्रके नवमराशि