पृष्ठम्:जन्मपत्रदीपकः.pdf/५२

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

४४ जनष्षष्ठं अर्कैः- (क) दशाभुक्तभोग्यायल ~~ भयावमानेन हता दशाब्दा भभोगमानेन हृताः फलं स्यात् : समादिके भुक्तमनेन हीना दशामितिर्भाग्यमितिः स्फुटा स्यात् । ततः प्रभृत्येव दशाफलानि प्रकर्षनीयानि बुधैर्जुहाणाम् ॥ ५३ ॥ दश वर्षे को पलात्मक भयत से गुणा करके पछामकभभोग से भाग देने पर लब्धि वर्ष होता है। फिर वर्ष शेष को १२ से गुणा करके उसी भभोग से भाग देने पर लब्धि मास आता है । पुनः सास शेष को ३० से गुण के उखी हर से भाग देने पर भाग फल गतदिन आता है । एवं दिन शेष को ६० से गुणा करके उसी भाजक से भजन करने पर छ€िध गतघटी होती है और घटी शेष के ६० से गुण के उसी भाजक से भाग देने पर लब्धि पळा होती है । एवं ५ स्थानों तक लब्धि लेकर आगे प्रयो जाभाव से शेष को परित्याग कर देना चाहिये ! अत एव किसी ने लिखा भी है शेषाद्कंगुणा मासः शेषास्त्रिशद्गुणा दिवा । शेषास्षष्टिगुणा नाडयः शेषात्षष्टिगुणः पलाः ।। इति । इस भांति जन्मकालीन द्शा का चौरात्मक भुत बर्ष, मास, दिन, घटी, पल होता हैं। इस को दशा। वर्ष में घटा देने से शेष दशा का भोग्य वर्षादि हो जाता है। यहीं से दशा की प्रवृत्ति होती है ।। ५३ ।। ( ख ).दशा का भोग्यानयन भयातघटयूनभभोगमानं स्वैः स्वैर्दशब्दैर्गुणितं विभक्तम् । भभोगमानेन फलं भवेद्य तदेव चोग्याः शरदो दशायाः ॥ ५४ ॥ भयात को भभोग में घटा कर' जो शेष बचे उसको पलामक बना के दंशा वर्ष से गुण करने पलरमक भभोग से भाग देने पर लघि देश का भोग्य वर्षोंकि हो जाता है । ५४ ।।