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४४ स्वदाहरणखटिप्पएहिन्दो टीका सहितः । अंशादिक स्पष्ट चन्द्रमा को ३ से गुणा करके ४० क भाग्न देने पर डब्धि इत्र की संख्या हैं' ती है शेर झंझादि के श्य र से शु छ र करने ' का भाग देनेसे लब्धि दुS ' भुक्तवर्यदि द् िन है ; उसके बाद ४ के मृत्रिवध से भोग्य को क क्रे , ५८१ (=) अंदादि नक्षत्र शेप पर से देश का भोग्यान्यन भागादिकं श्राः किल यद्भशर्षे चैिन्नैर्दशाब्दैगुणितं विभक्तम् । शून्याब्धि४०भिस्तन्खलु भोग्यमानं विनः अयालेन भवेद्दशायः ।। ४८५ अंशादि नक्षत्र शेष(१) ( भोग्य ) को त्रिगुणित से मुड देश न करके ४० के भाग डैने से डेटिंध दुश का भोग्यवर्षादि होता है ।। ५८ । ।। (२) अन्तरदशसा घन कः सुलभप्रकार दश(दशघलभवस्य योङ्क अयः स् धीरैस्त्रिगुणो चित्रयः । तावन्मिताः स्युर्दिवसश्च मासः शेषाङ्कतुल्याः सुधियाऽवगम्याः ॥ ५९ ॥ जिस ग्रह की महादशा में अन्तर दशा निकालनी हो उन दोनों ग्रहों के महादश का परस्पर गुt करने जो अङ्क ( संख्य। ) हो उसके वध से आद्यङ्क को से गुणा करडैने पर दिन हो जाता है। और शेषज्ञ के समान बना लेना चाहिये ) ।। ५१ ।। उदहरण बुध की महादशा में शनि का अन्तर बना है तो बुधके दशवर्ष १७ से शनि के दशवर्ष १९ को गुण किया तो १७ x १९ = ३२३ हुए इन में आथक्क ३ को ३ से गुण। क्रिया को ९ दिन हुए थे और शेष ३३ मास बचे । अर्थात् बुध की महा . दशा में शनि का अन्तर २ वर्षे ८ मास ९ दिन का हुआ । एवं सर्वत्र अन्तरदशा का साधन बी सुगमता से हो जाता है । =

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' = = १स्पष्ट चन्द्रकला . में ८०० से भाग देने पर जो लब्धि आवे वह रात नक्षत्र की संख्या शेती है और वर्तमान नक्षत्र की मुक्त कला होती है। भुककला को ८७० में पद्य के ६० का मार्ग शेष देने से नक्षत्र का भोग्यांश ( अंश छेष ) होता है।