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५७ जमपश्रद्यक में ध्रुवक घटाने से राहुक अन्तर, राहु के अन्त में ध्रुवक घटाने से बुझ का अँन्दर, बुध के अन्तर में डुबक घटने से बृहस्पति को अन्तर होता है । राहु की अन्तरदश की तिहाई के तुल्य सूर्यका अन्तर, झुठन्तर के आधे के बराबर चन्द्रमा का अन्तर और सूर्य के अन्तर में ध्रुवक जोड़ देने से मङ्गळ और केतु का अन्तर होता है l६१-६४।। आरोहक्रमसे अन्तरादिका साधन निम्नं त्रिभिः खलु खगस्य दशश्रिमयं स्पष्टं भवेद्ध्रुवकसंज्ञकमन्त्रार्थम् ! दिग्भी सैश्च गुणिले क्रमशो भवेत स्पष्टंऽतरे हिमरुचो दिवसेश्वरस्य६५ द्वयोर्युताविन्द्रगुरोः प्रमाणं ततो भवेयुर्जुवकस्य योगात् । सुधाऽगुसौर्याऽऽस्फुजितां क्रमेणान्तराब्दमानानि परिस्फुटानि ॥६६॥ यन्तरे तद्धुत्रकस्य योगाद्भौमस्य केतोश्च परिस्फुटत्वम् । ज्ञेयं बुधैः सद्धिषणाधनाढ्यैः सज्यौतिषाकोडनसुप्रवीणैः ॥ । ६७ ।। जिसकी महादशा में प्रहका अन्तर साबन करना हो उठ के दशावर्ष को ३ से गुण करनेसे उसका ध्रुवक हो जाता है। उन ध्रुवक को क्रमसे १० और ६ से गुएन करने से चन्द्रमा और सूर्यका अन्तर होता है । इन दोनों (सूर्य और चन्द्रमा) के अन्तरदशाओंके योगके बग बर बृहस्पति का अन्तर होता है । बृहस्पति के अन्तर में बार२ ध्रुवक जोड़ने से क्रमसे बुध, राहु शनि और शुक्र का अन्तर हा जाता है सूर्य के अन्तर में डुबक जोड़ देने से सङ्गळ और केतु का अन्तर होता है । ६५-६७ ।। उहरण - बुध की मददशा में ९ ग्रहों का अन्तर छाना है जो बुध के दशवर्ष को ३ से गुण कर दिया तो १७४३ = ६१ दिन अर्थात् १ महीना २१ दिन बुधक ध्रुवक हुआ। इल ( १२१ ) को अक्रमसे १० और ६ वे गुण दिया जाय तो १७ महिना ( १वर्षे ६ मास ) चन्द्रमाका और १० महीना ६ दिन सूर्यका अन्तर हुआ । दोनों को जोड़ दिय तो २ वर्षे ३ मीना ६ दिन बृहस्पति का अन्तर हुआ । इसमें गूचक १॥२१ जोड़ दिया तो २ वर्ष ४ महीना २७ दिन बुधका अन्तर हुआ । इसमें ध्रुवक १॥२१ जोड़ ड़िया तो २ वर्छ ६ महीना १८ दिन राहुका अन्तर हुआ । फिर इसमें ध्रुवक १।२१ बोड़ दिया तो २ वर्षा ८ मास ९ दिन शनिका अन्तर हुआ । फिर इसमें १२१ ध्रुवक जोड़ दिया तो २ बर्षा १० महीना शुक्र का अन्तर हुआ । पुनः सूर्य के अनन्तर (१० स० ६ दि०) में धूवक १११ जोड़ दिया तो ११ महीना २७ दिन केतु और मंगल का अन्तर हुआ । इन अन्तरों को यथास्थान रख दिया तो पूर्व लिखे चक्र के तुल्य बुधमें ९ प्रहों के अन्तर हो गये ।( ४९ घुछ देखिये ) प्रत्यक्ष का भ्रवक्शन-- महादशाधीश्वरवर्षघातश्खवेद’’भुक्तो दिवसादिकः स्यात् ।