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सोदाहुएस०५हिन्दी टीका सइिक्षर है। श्रुत्रोनु प्रत्यन्नरके प्रसध्यं पूर्वप्रकारेण दश प्रमाणम् । ६८ ।। दोनों प्रहों के महादशा वर्षों को आपस में जुएन कसे ४० क. आ दैनेसे छबिंध दिनादि प्रलन्तर साधन करने के लिये चुंबक होना है ? इस ध्रुवक परसे पूर्व विधिके अनुसार त्रयम्मरदशा का साधन करना चहिये ।।६८।। उदाहरण बुध की महादशा में शनि की अन्तर दशा में सय ग्रहों का प्रत्यमर लधन करना है तो दुध और शनि के शवय का शुश करकं ४० का भाग दिया है १७ ४ ९ ९ = ८देन ४ ६ ३३ पर ध्रुवक हूँ आ ३ इ२ १२ से १६वद् प्रयन्तर देश ४ • छल जाय । - सुक्ष्मादि का भुवनयन-- महादशादेर्नाथानां दशब्दा गुणिता मिथः । खनागैः खनृपैर्भका सूक्ष्मे प्राणे परिस्फुटौ ॥ ६९ ॥ ध्रुवौ भवेतां बटयादि-पल!य सुधिया ततः । प्रसज्यं पूर्ववत्सर्वं प्रत्यन्तरदशादिकम् ॥ ॥ ७० ॥ द, अन्तरश, प्रत्यन्तरदशाके स्वामियों के महाशवर्षों का आपस में गुण करके ८० का भाग देने से उपशा ( सुक्ष्मदशा ) आनयन के लिये घट्यादिक ध्रुवक होता है । और दशा, अन्तरदशा, श्रयन्तरदशा और सूक्ष्मदशा के स्वामियों के दृशावर्षों का परस्पर गुण करके १६० का भाग देने से प्राणदश का ध्रुवक होता है। उसके बादृ पूर्वति ६१-६७श्लोकों) के अनुसार सुक्ष्मशाँ और प्राणदशा का साधन करना चाहिये ।६९-७० उदाहरणः बुध को महादशा में शनि की अन्तरदशा में गुरु की प्रत्यन्तर दशा में स्त्र प्रह को सूक्ष्मदशा का ज्ञान करना है तो बुध की सहादशा का वर्षी १७, शनि की मद्द दशा का वर्षी १९ और गुरु की महादश का वर्षे १६ है । इनका आपस में जुष्मन फल निकाल के ८० का भाग दिया तो गुरु की प्रत्यन्तर दशा में सब ग्रहों को सुक्ष्मदशा लाधन के लिये घटादि भूवक =q* ?y* १६ ८० = ६४ घ५ ३६ परु = १ दि९ ४ घ• ३६ पर हुआ इस पर से पूर्वं विधि के अनुसार प्रत्येक ग्रहों की सूक्ष्म दशा का ज्ञान करना चाहिये एवं प्राणदशनयनार्थं ध्रुवक का भी ज्ञान होता है ।