पृष्ठम्:जन्मपत्रदीपकः.pdf/७०

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

अकर्त्रीयकरें ३ धन्य? म अन्तर ॐ भ्रामरी में अन्तर घ.|श्न. की .उ.वि. सं. { मं.वि.ना. भ. उ.वि. सं. } मं. पि.घ. दशा वृ.श्रौ, वु. २.. स.के चं. ३.भै. सु. श. शु. र.के चं, सु. ब्र. दशेरा ०) वर्षे ३ | ४ | ५ ६ ७ ८ } १ \ २ \ ५ ६ ८ ६ १० | १ २ ४ मास ० १०२० ० १० २० १०२० ० दिन ५ भद्रक में अन्तर ६ उलूक झी अन्दर भ.उ.सि. स. मंपिध.प्रा. उ.चि. स. में.पि.धा.भा. भ. दशा | ङ.श.यु. श.स्. चू.भ. श. शु. रा के चं. सू. चू.भौ. सु. दशेश = = }

= = = = ० १ \ ० ८ ११ १ | ३ | ४ | ६ १०२०l२० १० २०१ २० ० दिन ७ सिखा में अन्तर ८ सङ्कटा में अग्नर |सि. 8. मं•|पिं.धा.झ. | भ. | उ. सं. [मं.पि.धा त्रिा. भ. उ.सि.| दशर |शु- रा.के चं. सू. इ.भ. सु. श. रा -के . स. ब्र. भ. बुशशुदशेश eि " tabas इन द्रव ० | १ | १ ११ वर्षे ४ | ६ २ | ४ |७| ६ ११ २ ६ | २५ ८ }१०| १ | ४ | ६ | मास १० २ १० २ ० ० १०५२ ०| १ | १ २०j१० ० २०११ ० ० २० दिन होशलग्नानयन द्विचेष्टनाडयः पञ्चासो मं शैवं च पलीकृतम् । दशप्तमंशस्ते योज्या रवौ होरोदयं भवेत् । विषमेऽक्षे रवौ योज्यं समेऽद्रे लग्नभादिषु ।। ७४ ॥ इष्ट घटी पळ को २ से गुणा करके ५ का भाग देने से लब्धि राशि होती है। शेष का पल बना के १० से भाग देने पर लब्धि अंश होते हैं । यदि जन्मलग्न विषससख्यक हो तो राश्यादि सूर्य में एवं यदि जन्मलग्न खम संख्यक हो तो राश्यादि जन्मलग्न में पूर्व उब्धि को जोड़ देने से स्पष्ट होरा लग्न होती है ।। ७४ उदाहरण इष्टकाल १३११ को २ से गुणा किया तो (१३९१) २ = २०९० गुणन को छ हुआ । इस २०६० में १ का भाग दिया तो लठ्धि ३ शशि हुई । शेष २१० का पळ बना १७० कै १० का भाग दिया वो लब्ध १७ अंश हुए। इस लब्ध राशरदि ९१५ को जन्म दर मिथुन) विषम संख्यक होने के कारण स्पष्ट सूर्य ११।२। १८१० में जोड़ दिया तो राधयदि स्पष्ट होरा लखन ९॥७६८१० हुई ॥

  • किसी २ का मत है कि सर्वदा सूर्य ही में जोड़ना चाहिये परन्तु अनार्य होने के कारण

यह मत देय है ।