पृष्ठम्:जन्मपत्रदीपकः.pdf/७१

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स्लोदाहरणदटिप्पणहिन्दी टीका सहितः । ६३ जैमिनि के अनुसार अयुदय साधन-- लग्नेशरन्ध्रपत्योश्च लग्नेन्द्वोर्लग्नशुरयोः । स्वस्राण्येवं प्रयुञ्जीयात्संत्रद्दयुषां त्रये ।। ७५ ! लग्ने च मदने चन्द्रे चिन्सयेल्लग्नचन्द्रतः। अन्यथा शनिचन्द्रभ्य चिन्तनीयं विचक्षणैः ॥ ७६ ॥ (१) लग्नेश और अष्टमेश से (२) लग्न और चन्द्रमा से और (३) लग्न तथा हरालग्न से वक्ष्यमाण प्रकार से आयु का साधन करना चाहिये। द्वितीय प्रकार में यदि चन्द्रम या लग्स सप्तम में बैठा हो तो लग्नचन्द्रमा वर से अन्यथा ( लग्न या सप्तम में न पड़ हो तो ) शनि-चन्द्रमा पर से आयु साधन करना चाहिये ।। ७५-७६ ।। अयुदय ज्ञान का प्रकार अरे चरस्थिरद्वन्द्वाः स्थिरे द्वन्द्वचरस्थितः । इन्द्रं स्थिरोयचरा दीर्घमध्याल्पकायुषः ! ७७ ।। जिन दो प्र के द्वारा यु देखन्ह है। इनमें यदि एक चराशि में दूसरे चर, स्थिर या द्विस्वभाव में हो तो क्रम से दीर्घ, मध्य और अल्प आयु जानन्ना । यदि रक धिर में दूसरा क्रम के द्विस्वभाव, चर ओर स्थिर में हो तो ये दीर्घ, मध्य और अरब आयु समझता । एवं यदि एक द्वि स्वभाव में दूसरा क्रम से स्थिर, द्विस्वभाव तथा चर में हो तो दीर्घ, मध्य और अल्प आयु का योग होता है । स्पष्टता के हेतु नीचे का चक्र देखिये ७७ दीर्घायु भरपयु अरे लग्नेश: १ बरे लग्नेशः १ चरे अह्मेशः ८ चरे लग्नेशः । द्विस्वभावेऽष्टमेशः ८ स्थिरेऽष्टमेशः ८ स्थिरे लग्नेशः १ स्थिरे लग्नेशः १ } स्थिरे कश्लेशः १ द्विस्वभावेऽष्टमेशः ८ च्रे अष्टमेशः ८ स्थिरे अष्ठमेशः ८ द्विस्वभवे लडनेशः ० } द्विरवभावे लग्नेशः १ द्विस्त्रभावे लग्नेशः १ त्रेि अष्टमेशः ८ / द्विस्वभावे अष्टमेशः ८ ३ चरे अष्टमेशः आयु स्पष्ट करने का प्रकार रसा४९६गीजात्रेन्दुभिः १०८चून्यमासै १२० स्त्रिधा दीर्घमायुः कलौ सम्प्रदिष्टम् । चतुष्षष्टि ६४बाहद्रय७२शीति ८०प्रमाणे र्मतं मध्यमायुनृणां वसरैः स्यात् ॥ ७८ ॥