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जन्मशुशदीद्यक तथा द्वित्रि ३२धवह्नि ३६शूज्याधि४०वर्षे मैत्रेदरूपमायुर्नराणां युगान्ते ॥ ९ ॥ उपर्युक्त तीनों रीतियों में से दोनों प्रकारों से भिन्न २ आयु श्रवे ते ठर न हो लत पर से आई हुई आयु समझना ! ९६, १०८, १२० बर्षे की दीर्घायु, ३४, ७२५ ८० वर्ष तक मध्यायु एवं ३२, २६, ४० व धे तक अल्पायू योग कहा जाता है। इन में ३२ ३६५१ वर्ष के खण्ड होते हैं। यदि तीनों प्रकार से दीर्घायु हो तो १२० , दो प्रकार से दीर्घायु हो ते १९८ वर्ष, एक प्रकार से दीर्घायु हा तो १६ वर्ष आयु जानना । पर्व हीनों प्रारों से अल्पायु योग हो तो ३२ वर्षे दो प्रकार से अल्पायु हो तो ३६ वर्प, एक ही प्रकार से अल्पायु योग आवे तो ४० वर्षे आयु खण्ड समझना। लग्नेश-अष्टमेश के सम्बन्ध से मध्यमायु हो ते ८० वर्ष, लग्न-चन्द्रमा य शनि-चन्द्रमा के सम्बन्ध से मध्ययुयोग आता हा ते ७२ वर्ष और लग्न होरादून द्वारा मध्ययुयोग निश्चित हुआ हो तो ६४ वर्षी आयु जानना (अर्थात उक्त खण्डों कों ग्रहण करके आयु स्पष्ट करना ) चाहिये. उपर्युक्त विधि से अयदय विधायक ग्रहों का निश्चय हो जाने पर यदि एक ही प्रकार से साधन करना हो तो दोनों योग कारक ग्रह के अंशादि का योग करके २ से भाग देने पर जो लब्ध हो, उसको अंशादि जानना । एवं यदि दो प्रकार से आयुह्य निश्चित हुआ हो तो चारो योग कर्ताओं के अंशादि का योग करके ४ का भाग देकर लब्धि अंशादि बना लेता । एवं यदि तीनैं प्रकार से आयु का निश्चय किया गया हो तो छयो योगकर्ताओं के अंशादि का योग करके ६ का भाग देना जो लठ्धि आवे उसको आयुः य धन के योग्य अंशादि जाने । उसके बाद इन लब्ध अंशादियों को योगप्राप्त ३२, ३६ या ४० खण्डों से गुणा करके ३° का भाग देना तो लब्ध वर्षादि होग इन लब्ध वर्षा- दिकों को अल्पायु हो तो अल्पायु के धूम्रखण्ड में, म्ध्यायु साधन करना हो। ते मध्यायु के प्राप्तखण्ड में और दीर्घायु प्राप्तखण्ड लाना हो तो दीर्घायु के में घटा देने से स्पष्ट आयुय का मान होता है। किसी २ आचार्यों ने ३२, ६४ औ १६ रूप अल्पायु मध्ययु और दीर्घायु का खण्ड कल्पना करके आयुट्रय खधन करना लिखा है द्वात्रिंशत्पूर्वमल्पायुर्मध्यमायुस्ततो भवेत् । चतुष्टयष्टया पुरस्तातु ततो दीर्घमुदाहृतम् । पूर्णमादौ हानिरन्तेऽनुपातो मध्यतो भवेत् । राशिद्वयस्य योगाद्धं वर्षाणां स्पष्टमुच्यते ॥ अत एव द्वात्रिंशद्रप खण्डा पर से आयु साधन करने के लिये नीचे सारणी दी जाती हैं ।। ७८-७९ ।। । प्री