पृष्ठम्:जन्मपत्रदीपकः.pdf/७४

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

६६ मेषशदधकः अन्यथा ( न बैठा हो ते ) कक्ष्य हस होता है । एवं योगकारक बृहत् िलग्न वा सप्तम् में पुड़ा हो अथवा केवळ शुभ अह से ही युक्त व । ईष्ट हो तो कक्ष्यावृद्धि होती है अन्य प्रकार से आयु विद्यार - पितृलाभरोगेशप्रणिनि कण्ठकदिस्थे स्वतश्चैत्रं त्रिधा । लग्न विषमसंख्यक हो तो क्रम से जो अष्टभेश और द्वितीयेश हे उनमें जो बलवान् हो वह ग्रह यदि लग्न से केन्द्र १I४१७१०] में हो तो दीर्घायु, पएफर [२५८११] में हो तो मध्यायु और आयोक्लिम [३/६९१२] में हो तो अल्पायु जानन । यदि लग्न समसंख्यक हो तो उक्रम से जो अष्टमेश और द्वितीयेश { अर्थात् षष्ठेश और द्वादशेश } झे उन दोनों में जो प्रह बी हो वह यदि केन्द्र में हो तो दीर्घायु पणफर में हो तो सध्यायु और अपोक्लिम में हो तो अपाय स्म झन } रत्यादिक ग्रहों में जो सबसे अधिक अंकाला हो उसको आत्मकारक कहते हैं। आरमकारक से भी इसी प्रकार विचार करना चाहिये अर्थात् आत्मकारक ग्रह यदि विषम राशि में स्थित हो तो अष्टमेल और द्वितीयेश में, यदि समसंख्या की राशि में पड़ा हो तो षष्ठे और द्वादशेश में जो ग्रह बती हो वह यद्वि कारक से केन्द्र में हो तो दीर्घायु. पणफर में हो तो मध्यायु, आपोक्लिम में हो तो अल्पायु होती है। परन्तु लग्न विषम संख्यक हो और करक तृतीय में हो तो केन्द्र में रहने पर हीनयुपणफर में मध्ययु और आपेक्लिन में दीर्घायु जननम् तथा लग्ने समसंख्याक और व्झाक ९ादश में हो तो भो पूर्ववत् केन्द्र में हीनयु, पणफर में मध्यायु और आपोक्लिम में दीघयु] जानना । इन दोनों योगों में अष्टमेश-द्वितीयेश अथवा घटेश-द्वादशेश यद्रि कारक के साथ बैठा हो वा स्वयं कारक हो जाय तो मध्यमयु हो जानना। ग्रन्थसमाप्तिकाल- हिमकरखगखेटेळा१९९१मिते विक्रमाब्दे शिवतम इषमासे स्वच्छूपक्षे वलथे । शशितनुजनुषो बारे तिथौ सूर्यवनो रंगमदषि सुपूर्ति जन्मपत्रपदीषः ॥ ८० ॥ श्रीविक्रम सं० १९९१ आश्विनशुक्ल विजया १० बुधवार को यह जन्म पत्रदीपक समाप्त हुआ । ८१ ।। इत्याजसगढ़मॅण्डलान्तर्गतत्रपुराभिजनूEरयूपारीएपण्डित श्री धर्मेतद्विवेदितनुजन्मना ब्यौतिषाचार्यश्रीवैिन्ध्येश्वरीप्रसाद- द्विवेदिना विरचिते जन्मपत्रदीपकः समाप्तः । पतत्सुदीपपरिंदीपनतोऽपि नतोऽज्ञानान्धकारनिचयो बुधद्वतश्चेत् । न स्याज्ञदैनकिरणामसुप्रकाशझुकाक्षिदोष इव मै किलकोडित दोषः ॥ श्रीगुरवः शरणम् । मुञ्जकः-विद्याविलाल प्रैव । १६४६