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ताजिलकण्ठी जलदगर्जन7-उदाहरणचन्द्रिका दंस्कृतtइवेटीकथा, गूढग्रन्थिबमैचिनी-घखन्ध चश्च सहिता । टीकाकारः--यौ० आई० मी० १० कक्यतीर्थे पं० गङ्गधरमिश्र जी यह परीक्षार्थियों के लिये अत्यन्त उपयुक्त और आदरणीय व्याख्या है । देश भर में इसकी प्रशंसा हो रही है, कि हमारे योग्य संपादक ने उपर्युक्त सभी टीकाओं में अपने २ नाम के अनुकूल पन्थ के परीक्षोपयोगी समस्त विषयों और कठिन स्थलों को इतनी सरलता से सिद्ध किया है कि प्रत्येक सुकोमलति चालक भी थोड़ा सा अनुगम करके अपने आप भी उन विषयों का ज्ञान और अभ्याख कर सकता है । इसकी प्रशंस। स्वयं वय। लिखी जावे जब प्रथ आप के हाथ में आयगा। आप भी प्रशंसा किये बिना नहीं रहेंगे । ३) चैनल सान्वय-‘अमृतधरा’ हिन्दी टीका साहिब } पं. जीवनाथ झा विरचित फलित प्रन्थों में यह सर्वं श्रेष्ठ प्रन्थ है। इध्र प्रन्थ में प्रश्न के आधार पर, प्रहं की स्थितेि धर, वायुी परिस्थिति पर तथा प्राकृतिक अनेक लक्षणों से वृष्टि का विचार एवं फखल का परिणाम तथा धान्य के व्यापार आदि विषयों का भी विचार सुचारु रूप से किया हुआ है । लघु होने पर भी सर्वोपयोगी होने से अड़े ही महत्व का यह प्रन्थ है। षट्पञ्चाशिका भट्टोस्पय्कृत संस्कृती युक्त-विभू'हिन्दीटीकासहितू प्रज तक इस प्रन्थ की अन्य जितनी हिन्दी टीकाएँ प्रकाशित हुई प्रायः वे सब मनमानी होने के कारण ही फलादेश में उपयुक नहीं होती थीं, अतः जनता के आग्रह से योग्य विद्वानों द्वारा भीरपल क्रुत संस्खू त टीका के ध्रथ २ डल्फी छयान्नखर ही सरल भाषा टीका खहित यह संस्करण प्रकाशित हुआ है |=) ‘सुबोधिनी’ भाष टीका सहितम् । यदि आप रत्नगर्भा भगवती वसुन्धरा के अन्त:प्रदेश के महान की गवेषण करने के इच्छुक हों तो महर्षिलोमश प्रणीत इव “श्वराचऊ" नामक ग्रन्थ को एक बार अवश्य ही देखियै । इसी स्रर ‘पुयोधिनी| भाषा टीका को पड़ने सै आपको स्वयं ही इस बात का ज्ञान हो जाया कि अमुक अमुक जगह पृथिवी के नीचे रन, महारत्न आदि हैं । जैमिनिसूत्रम् सेदहर-विमलर संस्कृत-हिन्द टीक वयोपेतम्। अन्य प्रकाशित संस्करण में जो कुछ अधूरापन और त्रुटियां थीं उन खभी परीक्षोपयोगी विषयों का समावेश प्रस्तुत संस्करण में कर दिया गया है १। ) प्राप्तिस्थानम्-चौखम्बा-संस्कृत-पुस्तकालय, बनारस खिटी । २.