पृष्ठम्:जन्मपत्रदीपकः.pdf/९

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श्रीजानकंज्ञनये मः | जन्मपत्रदीपकः सोदाह-सटिप्पण-हिन्द्रुटीक्या सहितः। मङ्गलाचरण यकृपालेशतः सर्वे केन्द्रंशाद्य दिवौकसः । इष्टं दातुं समर्थाः स्युस्तं रामं शिरसा नुमः ॥ १ ॥ जिसकी कृपा के देश से ब्रह्मा, इन्द्र, मद्देश इत्यादि देबवृन्द अथवा केन्द्रेश इत्यादि (केन्द्र स्थान १४७१० के स्वामी, त्रिकोण स्थान ५/९ के स्चमो इयादि ) ग्रह अपना २ अभीष्ट फल देने में समर्थ होते हैं, इस भगवान् श्रीराम वन्द्वी को में शिरसे प्रणाम करता हूँ। १ ॥ पञ्चाङ्ग पर से प्रह पढकरने की रीति सूर्योदयाद्यातकालं साधनेष्टं प्रकीर्तितम् । पञ्चाङ्गस्थं मिश्रमानं पक्षिसंज्ञे बुधैः स्मृतम् ।। २ ॥ । अनयोरन्तरं कार्यमवशिष्टं दिनादिकम् । पङ्काधिक्ये यातसंज्ञमैष्यमिष्टाधिके भवेत् ॥ ३ ॥ यातैष्यकालेन दिनादिकेन निधनी गतिः खङ्ग६०हूऽऽमभागाः। शोष्याश्च योज्याः स्फुटखेचरे । पाते तथा वक्रखगे प्रतीपस् ॥ ४ ॥ सूर्य के बिम्बाधयकाळ से जन्मसमय तक जितना घटी पल बीता हो उस को सावन इष्टकाळ और तिथिपत्र ( पञ्चाङ्ग ) में लिखे मिश्रमानकाळ को पंक्ति कहते हैं ( प्रहलाघवीयपञ्चाङ्ग में सूर्योदय काल का ही स्पष्टप्रह बना रहता है, अतः उसमें उदयकाळ को ही पंक्ति समझना चाहिये )। इन दोनों ((१)इष्टकाल और पंक्ति ) का अन्तर करने ( जिस में जो घट (१) ६ण्यदि है बट/दि इष्टकाल बनाने की रीति-- सूर्युबिम्बाबूदय से मध्याह्न के भीतर का जन्म को तो जन्मकलीित e« => - * ॥