ज• आंe ( ५६ } प्र भe दिने दिनेषि लाभं तु त्रिके इनिः प्रजायते ॥ टीका--जो लाभ स्थान का मालिक लग्न में हो अथवा केन्द्र १ । ४ । ७ ५ १० में पड़े तो दिन प्रति दिन लाभ ही हो और जो ८ । ६ । १२ हो तो लाभ को हानि कहे । खर्च भाव फलम व्ययेशे च त्रिकस्थे वा सर्वप्तपञ्च नरः। हेन्द्र चाऽथत्रिलाभे वा दरिद्री जायते ध्रुवम्।। टीक -जो चारहवे स्थान का मालिक ६ । ८ १२ पड़े तो सम्पूर्ण सुख हो और केन्द्र ११ ४ ७ १० वे' पड़े या ३ ।। ११ वे पड़े तो दरिद्री हो ये निश्चय जान जिसके चन्द्रमा से २ और १२ वे' कोई ग्रह नहीं हो तो वो मनुष्य दरिद्री होता है यदि चन्द्रमा को वृहस्पति देखता हो तो उसका दरिद्री योग नहीं फ़हन । ग्रह बाहन चक्रम् ग्रह शान्ति रन चक्रम
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= सूर्य | चन्द्रमा | मङ्गल } सूर्यो । चद्र | मङ्गल अश्व मुग | चुन्नी |e___मदृ । । मोती सूप बुधघ } शुरु शुक्र गुरु सिंह इथी घोड़ ईरा | | शुनि | राहु | केषु | शनि । राहु ! तु बैल चीता । नातू नीलम की लस्सोन |सरफर्तामणि बाहन सवारी को कहते हैं । इन चीजों के देने से ग्रह प्रसन्न हो जाते हैं ।