पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१०

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

(२) ताजिकनीलकण्ठी ! . प्रथम तंत्रारंभमें निर्विघ्नता सहित ग्रंथसमाप्त्यर्थ गणेश सूर्य पितृ चरणकमल, को नमस्कार तथा विषय प्रयोजन संबंध उपजाति छन्दसे कहता है ॥ उपजातिच्छंद:- प्रणम्य हेरम्बमथो दिवाकरं गुरोरनंतस्य तथा पदाम्बुजम् ॥ श्रीनीलकंठो विविनक्ति सूक्तिभिस्तत्ता- जिकं सूरिमनःप्रसादकृत् ॥ १ ॥ • श्रीनीलकंठनामा दैवज्ञ गणेश और सूर्यनारायण तथा अपने पिता अ- नंतनामा दैवज्ञ गुरुके चरणकमलको प्रणाम करके जीर्ण ताजिकग्रंथको विचार के इंद्रवज्रा रथोंद्धतादि सुन्दर छन्दोंमें बडेबडे ताजिक ग्रंथों के प्रयोजन स्वल्पतरग्रंथसे बोधननिमित्त विद्वान् ज्योतिषियोंके मन प्रसन्न करनेवाली नीलकंठी नामक ताजिक प्रकट करता है ॥ १ ॥ मे उपजा० - पुमांश्चरो : दृढचतुष्पाद्रक्तोष्णपित्तोतिरवोद्रिरुत्रः । पीतो दिनं प्राग्विषमो दयोल्पसंगप्रजो रूक्षनृपः समोजः ॥ २ ॥ • प्रकरण में प्रथम राशिस्वरूप वर्णन करते हैं; यथा - मेष मेंढाका आकार, पुरुष राशि, चरसंज्ञा, अग्नितत्त्व, बलवान्, चौपाया, रक्तवर्ण, सोष्ण अर्थात् तमदेह, पित्त प्रकृति, बडाशब्द करनेवाला, पर्वतचारी, वनचारी ब्रा, क्रूरस्वभाव, पीतवर्ण [ यहां रक्त पीत दो वर्ण कहनेसे दोनों रंग मिलकर पाटल वर्ण शरीर ] दिवा बली, पूर्वदिशा, अल्प स्त्रीसंगकरनेवाला, और अल्पमजा, रूक्षक्रांति, क्षत्रियजाति और राशिसंख्यागणनामें विषम है किंतु का यह राशि सम काम देती है इसकारण यहां संज्ञा ही है इतने गुण मेषके हैं ॥ २ ॥ उपजा० - वृषः स्थिरः क्षितिशतरूक्ष याम्ये सुभूर्वा निशाचतुष्पात् ॥ वेतोतिशब्दो विपमोदयश्च मध्यप्रजा.. संगशुभो हि वैश्यः ॥ ३ ॥ वृष, बैलका आकार, स्थिरसंज्ञा स्त्रीराशि, भूमितत्त्व, रूक्षकान्ति, शीतस्वभाव, दक्षिण दिशा, सरलभूमिचारी, वातप्रकृति, रात्रिबली, चारचरण, श्वेतवर्ण,बडा शब्दकरनेवाला, विषमलन, न, तो अतिकामी न अल्पकाम, सौम्य राशि, वैश्यजाति, दृढांग, बलवान् शरीर इतने लक्षण वृषराशिके हैं ॥ ३ ॥