पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१००

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(९२ ) ताजिकनीलकण्ठी | प्राप्ति कष्टसे करेगा. जब पापहीसे युक्त दृष्ट और मुथशिली हो तो विवाह प्राप्ति नहीं होने देगा ॥ ३९ ॥ १४ ॥ उपजा॰—यशोधिपेनैधनगेखलेनयुतेक्षितेसघशसोविनाशः ॥ पापा जितस्यायशसोस्तिलाभोनष्टौज़सिस्यात्कुलकीर्त्तिनाशः ॥४०॥ १५॥ यशसहमाधीश अष्टम स्थान में हो और पापयुक्त वा दृष्ट हो तो अपने प्राप्ति किये यशका नाश होवे. किंच स्वयमजित महापातकों में से किसी एक पातक संबन्धी अयशंका लाभ होवे जब यही यशसहमेश अष्टम् और पापयुत दृष्ट होकर अस्तंगत भी हो तो अपने वंशसे चलाआया पितॄ पितामहादिकोंका जो यश उसे नाश करता है अर्थात् अपने सारे वंशकी कीर्ति नाशक है ॥ ४० ॥ १५ ॥ उपजा० - शुभेत्थशालेशुभहग्युतेवाबलान्वितेस्याद्यशसोभिवृद्धिः ॥ युद्धेजयोवाहनशस्त्रलाभः पापेसराफादयशोर्थनाशः ॥ ४१ ॥ १६ ॥ यशसहमेश शुभग्रहसे मुथशिली अथवा शुभदृष्ट वा युक्त हो तो यशकी वृद्धि होवे. उपलक्षणसे धर्मवृद्धि धनलाभभी होवे तथा संग्राम में, जय, अश्वादि- वाहन और धनुपादि शस्त्रोंका लाभ होवे जो यशसहमेश पापग्रहसे मुथशिली या शुभग्रह से ईसराफी उपलक्षणसे नष्टबली हो तो अपयशवृद्धि और धन- नांश होवे ॥ ४१ ॥ १६ ॥ 3 " उपजा० - आशातदीशचषडटरिःफविवर्जितः सौम्ययुतेक्षितश्च ॥ स्याद्वांछितार्थीबुवाहनादिलाभःखलेक्षायतितोतिदुःखम् ॥४२॥ १७॥ आशासहम और इसका स्वामीभी६|८|१२ स्थानों में न हों तथा शुभग्र इसे युक्त वा दृष्ट हो तो इच्छानुकूल हिरण्यादि द्रव्य वस्त्र, वाहन आदि और शस्त्रसे भूमिलाभ होता है, जो दोनोंही पूर्ववर्जित स्थानों में हों तथा पापग्रह युक्त वा दृष्ट हों तो अतिदुःख और वांछितार्थनाश होवै ॥ ४२ ॥ १७ ॥ उ० जा० - मांद्याधिपः पापयुतेक्षितश्चपापःस्वयंरोगकरोविचिंत्यः ॥ चेदित्थशालोमृतिपेनमृत्युंस्तदाभवेद्धीन बलेतिकष्टात् ॥ ४३ ॥ १८ ॥