श्रीगणेशायनमः । "द्वतीयतंत्र र भः . अथर्न उपेंद्रवज्राछन्दः – स्वस्वाभिलाषन हिलब्धुमीशानिर्विघमीशानमुखाः सुरौधाः ॥ विनाप्रसादंकिलयस्य नौमितं ढुंढिराजंमतिलाभहेतुम् ॥ १॥ ग्रंथकर्त्ता आचार्य नीककंठ दैवज्ञ ताजिकनीलकण्ठी द्वितीय फलतंत्र- प्रारम्भमें निर्विघ्नतार्थ गणेशजीको प्रणाम करता है कि, जिसके कृपा बिना महादेव प्रभृति देवसमूह अपने अपने अभिलाषोंको निर्विन्त्रतासे पानेको समर्थ नहीं हैं ऐसे डुंढिराज गणेशको सद्बुद्धिप्राप्ति के लिये प्रणाम करताहूं ॥ १ ॥ रथोद्धता - जातकोदितदशाफलंयतः स्थूलकालफलदंस्फुटंनृणाम् ॥ तत्रनस्फुरतिदैवविन्मतिस्तद्ववेदफलमादिताजिकात् ॥ २ ॥ जातकों में दशाफल बहुत कालपर्यंत एकही फलदाता मनुष्योंको कहेहैं यहां ज्योतिपीकी बुद्धि स्फुरित नहीं होती जैसे शुक्रकी दशा २० वर्ष पर्थ्य - तकी कही है तो इतने समय पर्यंत एकहीसा किसीकोभी नहीं रहता इस लिये सौर वर्ष मात्र समयावधिवाला सूक्ष्म फलविचार मैं प्राचीन ताजिक के अनुसार कहताहूं ॥ २ ॥ (गाथा ) तत्कालेकों जन्मकालरविणा स्याद्यतःसमः ॥ एकैकराशिवृद्ध्याचेत्तुल्योंशाद्यैर्यदारविः तदामासप्रवेशोयुप्रवेशश्चेत्कलासमः ॥ ३ ॥ ॥ . जन्म कालका सूर्य स्पष्ट राश्यादि पूरा वही जब मिले वह वर्ष प्रवेश - का समय होता है, उसी स्पष्ट में एक राशिमात्र जोडके अंशादि वही स्थापन करके मास प्रवेशका सूर्य्य स्पष्ट होता है तथा इसी स्पष्टमें एकएक अंश जोडके जिस महीनेका दिन प्रवेश करना है उसकी राशि उसी महीने लौं रखके तथाकला विकला पूर्ववतही स्थापन करके दिनप्रवेश होता है | इस सूर्य स्पष्टसे
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