पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/११

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

भाषाटीकासमेता । (३) इन्द्रवज्रा- त्यक्समीर: शुकभा द्विपान्ना द्वंद्वं द्विमूर्तिर्विषमोदयोष्णः॥ मध्यप्रजासंगवनस्थशूद्रो दीर्घस्वनः स्निग्धदिनेद् तथोत्र ॥४॥ एकखी एक पुरुषके द्वंद्वको मिथुन कहते हैं. ऐसाही आकारभी है और यह राशि पश्चिमदिशाकी स्वामी, वायुतत्त्व, ( वायुप्रकृति), शुकपक्षीकासा हरितरंग, दोचरण, सौम्य, पुरुषरूप, द्विस्वभाव, पूर्वार्जस्थिरस्वभाव और उत्तरार्द्धका 'चरस्वभाव, विषमराशि उष्ण, स्वभाव, स्त्रीसंगमें मध्यम, संतान भी बहुत अल्प, वनचर, शूत्रजाति, दीर्घ शब्दवालाग्घि (चिकना) शरीर, दिनमें . बलेवान, क्रूरसंज्ञा, दृढ शरीर इतने लण मिथुन राशिके हैं ॥ ४ ॥ उपेंद्रव० -ब जासंगपदः कुलीरश्चरोंगनापाटलहीनशब्दः ॥ शुभः कफी स्निग्धजलांबुचारी समोदयी विप्रनिशोत्तरेशः ॥ ५ ॥ कर्कराशि: कीटाकार अतिस्त्रीसंगी, बद्धचरण, चरराशि, स्त्रीजाति, पाटल अर्थात् श्वेतरंग, शब्दरहित, सौम्य, कफप्रकृति, स्निग्ध ( चिकना) शरीर, जलतत्त्व, जलचारी, समसंज्ञक ब्राह्मणजाति रात्रिबली उत्तरदिशाका स्वामी, इंढशरीर, इतने लक्षण फेंके हैं ॥ ५ ॥ उपजा ० - मान्स्थिरोग्निर्दिनपित्तरूक्षः पीतोष्णपूर्वेशदृढश्चतुष्पात्।। समोदयो दीर्घखोल्पसंगप्रजो हरिः शैलनृपोमधूम्रः ॥ ६ ॥ सिंहाकार पुरुष, स्थिरसंज्ञा, अग्नितत्त्व, दिनवली, पित्तप्रकृति रूक्ष शरीर, पीला- रंग, उष्णस्वभाव, पूर्वदिशाकास्वामी, बलवान् अंगप्रत्यंग, चारचरण, समसंज्ञा, दीर्घशब्द, स्वल्पनीसंगी, अल्पही संतान, पर्वतचारी, नृपति, धूम्रवर्ण यहांभी दारंग कहेगये हैं, प्रयोजन मेषवत् है कि पूर्वार्द्ध इस्का पीत उत्तरार्द्ध धूत्र धूवें कासा रंग है इतने लक्षण सिंह राशिके हैं ॥ ६ ॥ उपजा० - पां द्विपात्स्त्रीद्रित र्यमाश नेशामरुच्छीतसमोदया क्ष्मा।. कन्यार्द्धशब्दा भभूमिवैश्या रूक्षाल्पसंगप्रसवा शुभा च ॥ ७ ॥ कुमारीरूप, पांडु ( पिंगल ) वर्ण, दोचरण, स्त्री राशि, द्विस्वभाव (मि-