भाषाटीकासमेता । (१२१) ग्रहयुक्त दृष्ट हों तो अति शुभफल वर्षोत्तरार्द्ध में देते हैं और ऐसेही जन्म मुंथा मुंथेशमें से एकभी पाप ग्रहयुक्त वा दृष्ट हो तो वर्षपूर्वाईमें अशुभ फल जो दोनों पापयुक्त दृष्ट हों तो अति अशुभ फल देते हैं. एवं वर्ष में मुथा मुंथेश मेंसे एकग्रह पापयुक्त दृष्ट हो तो वर्ष उत्तरार्द्ध में अशुभ फल तथा दोनों हों तो अति अशुभ फल देते हैं ॥ ३६ ॥ इति महीधरकृतायांनीलकंठीभाषाटीकायां फलतंत्रेमुंथा फलप्रकरणं द्वितीयम् २ अथ वर्षारिष्टविचारः । - अनुष्टु० - लग्नेशष्टम गेष्टेशेतनुस्थेवा कुजेक्षिते ॥ ज्ञजीवयोरस्तगयोःशस्त्राघातो विपन्मृतिः ॥ १ ॥ व्याकरणमें 'रुष रिष् हिंसायां' इसमें रिष् धातुसे अनिट् 'क्त' प्रत्ययका आदान करके रिट पद सिद्ध होता है, नन् समाससिद्ध आरष्ट पदका अर्थ विपरीत जान पढता है. परंतु ज्योतिषग्रंथों में सर्वत्र रिष्ट और अरिष्ट पढ़ तुल्यार्थवाची होते हैं. अब अरिष्टयोग कहते हैं कि वर्षलग्नका स्वामी अष्टम स्थानमें हो इसपर मंगलकी दृष्टि हो अथवा अष्टमेश लग्नमें भौमदृष्ट हो उपल- क्षणसे पापद्दष्ट हो अथवा बुध बृहस्पति अस्तंगत हों तो शस्त्रसे चोट लगे, विपत्ति होवे और मृत्यु होवे ये तीन फल निर्बलताके क्रमसे हैं, जैसे प्रथम सामान्य बलमें शस्त्राघात, हीन बलमें विपत्ति, अतिहीन बलमें मृत्यु इस क्रमसे जानना. इस श्लोकमें तीन योगहैं ॥ १ ॥ ॥ अनुष्टु॰—अब्दलग्नेशरंप्रेश।व्ययाष्टहिवकोपगौ मुंथहासंयुतौ मृत्युप्रदौ तद्धातुकोपतः ॥ २ ॥ वर्षलग्नेश वा अष्टमेश मुंथा सहित बारहवें आठवें चौथे स्थानमें हो तो उस ग्रहके पितादि धातु उक्त से मृत्युसमान कष्ट होवे, जो मुंथासहित लग्नेश अष्टमेश दोनों उक्त स्थानों में से एकमें हों तो मृत्यु देते हैं ॥ २ ॥ • अनुष्टु० - जन्मल धिपोऽवीय सतीशोलग्नपोयदा ॥ सूर्य्यदृष्टो मृतिं धत्ते एं कंडूं तथापदः ॥ ३ ॥ जन्मलग्नेश जन्म तथा वर्ष में निर्बल हो और वर्ष में अष्टमेश लममें हे
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