पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१३

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भाषाटीकासमेता । उपजा० - मृगश्चरः ६मार्द्धरवो यमाशास्त्रीपिंगरूक्षः शुभ- भूमिशीतः ॥ स्वल्पप्रजासंगसमीररात्रिरादौ चतुष्पा- द्विषमोदयो `टू ॥ ११ ॥ . आकार तो नाकुका परंतु मुख मृगकासा, चरसंज्ञा, भूमितत्त्व, अर्द्धस्वरवान, दक्षिणदिशापति, स्त्रीराशि, पिंगल वर्ण, रूक्षशरीर, सौम्य, भूमिचारी, शीतप्रकृति, अल्पस्त्रीसंगी, अल्पप्रजावान्, वायुतत्त्व बली, पूर्वार्द्ध (चतुष्पाद) पशु, और उत्तराई जलचर पादरहित, विषम लग्न और वैश्यजाति ये लक्षण मकरके हैं ॥ ११ ॥ रात्रि 7. उपजा० कुंभोऽपदो ना दिन ध्यसंग सुः स्थिरः बुर वन्यवायुः ॥ स्निग्धोष्णखण्डस्वरतुल्यधातुः शूद्रः प्रतीची विषमोदये :॥ १२॥ कुंभ, कलशका आकार, पादरहित, पुरुष, दिवाबली, अल्पस्त्रीसंगी, अल्पसंतान, स्थिरसंज्ञा, विचित्ररंग, वनचारी, वायुतत्त्व, चिकना शरीर, संतत देह, अर्द्धस्वरवान, तुल्यधातु ( वात पित्त कफ तीनों प्रकृति ), शूद्रजाति, पश्चिम दिशापति, विषमलग्न, दृढ अंगप्रत्यंग इतने लक्षण कुंभके हैं ॥ १२ ॥ उपजा० - मीनोपदः कफवारिरात्रिनिःशब्दबधुद्वित- - नुर्जलस्थः || स्निग्धोऽतिसंगप्रसवोपि विप्रः भोत्तराशेट् विषमोदयश्च ॥ १३ ॥ - मीन राशिका आकार परस्पर एकके मुखपर दूसरीका पुच्छ ऐसी दो मछली और स्त्रीराशि, कफप्रकृति, जलतत्त्व, रात्रिबली, शब्दरहित, पिंग ल, भूरारंग, द्विस्वभाव, पूर्वार्द्ध स्थिरवत, उत्तरार्द्ध चरतुल्य, जलचारी, चि- कनाशरीर, अति स्त्रीसंगी, बहु संतति, ब्राह्मणजाति, शुभराशि, उत्तरदिशा पति और समलग्न इतने इसके लक्षण हैं ॥ १३ ॥ उपजा ० - घरांबुनोरग्निसमीरयोश्च वगै सुहृत्त्वं परतोऽरिभावः ॥ चापांत्यभागस्य चतुष्पदत्वं ज्ञेयं मृगांत्यस्य जले चर- त्वम् ॥ १४ ॥