पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१४

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(६) ताजिकनीलकण्ठी | पूर्व जो तत्त्व कहे गये हैं उनके प्रयोजन कहे जाते हैं, कि -- तत्त्व और वर्गीकी त्रीति स्त्री पुरुषमेलमें स्वामिसेवक में और गुरु शिष्यादिमें विचार- नी चाहिये, जैसे पृथ्वीतत्त्व और जलतत्त्वकी तथा अग्निवायुकी परस्पर प्रीतिहै, भूमि अग्नि और जल वायुकी परस्पर शत्रुता है, पूर्वोक्त स्त्री पुरुषा दिकोंके राशि एकही तत्त्व होनेमें अधिक प्रीति है, धनुराशिका उत्तरार्द्ध चौपाया है, पूर्वार्द्ध द्विपदहै, मकर उत्तराई जलचारी पादरहित और पूर्वाई द्विपद स्थलचारी है ॥ १४ ॥ इंद्रवज्रा०-~-पित्तानिलौ धातुसमः कफश्च त्रिर्मेषतः सूरिभिरू हनीयाः ॥ राजन्यविशूद्रधरासुराश्च सर्वे फलं राश्य- नुसारतः स्यात् ॥ १५ ॥ धातु और जाति गिननेकी युक्ति सुगम प्रकारसे कहते हैं, कि पित्त वायु समधातु अर्थात् तीनों धातु और कफ इतने मेपादि राशि तीन आवृत्ति करके जानना. जैसे मेष सिंह और धनका पित्त धातु, वृष कन्या मकरका वायु, मिथुन तुला कुंभका समधातु अर्थात् बात पित्त कफ .तीनों मिलकर होताहै; एवं कर्क वृथ्विक मीनका कफ धातु है. इसी क्रमसे जाती भी जानी जाती हैं, जैसे- मेष सिंह और धन क्षत्रियजाति, वृषकन्या व मकर वैश्य जाति, मिथुन तुला व कुंभ शुद्रजाति कर्क वृश्चिक व मीन ब्राह्मणजाति है. राशियोंके गुण जाति धात्वादि जितने कहेहैं. जन्म वर्ष प्रवेश और प्रश्नादि विचारोंमें जैसे जिनके नामहैं वैसेही फल विचारके कहना. जैसे क्रूर राशिसे क्रूरस्वभाव, सौम्यसे सौम्य और चरराशिसे चरता, स्थिरसे स्थिरता, द्विस्वभाषसे दोनों मिलाकर ऐसेही सम्पूर्ण राशिगुणोंका फल जन्म वर्ष और प्रश्नादिकों में बुद्धिसे कहना | शा बुद्धिका सहायक है. विशेष विस्तारराशिगुणोंका बृहज्जातक की महीधरीभापाटीकामें स्पष्ट- तर लिखाहै ॥ १५ ॥