आपाटीकासमेता । पोदमुदितंफलमदनाथे || खस्थेकुजेशशियुतेतुरयादिनाशः कुलत्वमशुभोपहतेव्ययेवा ॥ २ ॥ लग्नेश तथा वर्पेश बलहीन छठे आठवें बारहवें स्थानमें चतुष्पदादि जैसी राशिमें हो उसके सदृश फल देते हैं. जैसे चतुप्पदराशि उक्त स्थानों में हो तो चौपायाका वा उससे नाश होवे यह इस भावका सामान्य विचार है. और विशेष शुक्र नष्ट बल छठे स्थानमें पापग्रहों से क्रूरदृष्टि दृष्ट हो तथा मनुष्यराशिमें हो तो सेवकोंकी हानि होवे तथा ऐसाही शुक्र चतुष्पदराशिमें हो तो हाथी घोडे आदि चौपायोंकी हानि करता है ऐसेही वर्देशके अष्टम द्वादश स्थानगत होने में फल कहना और वर्षेश मंगल चंद्रया सहित दशम स्थानमें हो तो घोडे आदिकोंका नाश करता है तथा मनमें व्याकुलता भी करता, तथा पापपीडित मंगल छठे होनेसे भी यही फल देता है ॥ १ ॥२॥ व ति० - षष्ठेरवौखलहते चतुरंत्रिभस्थेभृत्यैः समंकलिरथा- ष्टमरिष्फगेपि ॥ मंदेब्दपेबलयुतेरिपुरिष्फ संस्थेभूवासनंदु- मजलाशयनिर्मितिश्च ॥ ३ ॥ वर्षेश सूर्य्य स्थानमें पापपीडित और चतुष्पदराशि में हो तो अपने नौकरोंके साथ कलह होवे तथा आठवाँ और बारहवाँ होनेमें भी यही फल होता है. और वर्षेश शनि बलयुक्त छठा वा बारहवाँ हो तो त्याग करीहुई भूमिमें नवीन वसती बनानेसे आजीवन होवे तथा वृक्षारोपण, जल- स्थान, कप, तलाव, धारा आदिकोंका निर्माण होवे ॥ ३ ॥ उपजा ० - स्वर्शोच्चगेकर्माणिसूर्य नैरुज्यमर्थाधिगमश्चजीवे ॥ सूर्येनृपाद्वाहुबलात्कुजेर्थोबुधेभिषग्ज्योतिषकाव्यशिल्पैः ॥ ४ ॥ 9 ( १५९ ) स्वाठ्या- वषश शनि अपनी राशि १० | ११ का वा उच्च ७ का दशमस्थान में हो तो शरीर नीरोग रहै तथा धनागम भी होवे जो ऐसाही बृहस्पति वर्षेश अपनी राशि ९ । १२ वा उच्च ४ का दशम हो तो यही फल देता है तथा वर्षेश सूर्य्य स्वराशि ५ वाउच्च १ का दशम हो तो राजासे धन मिले तथा वर्पेश मंगल स्वराशि १ । ८ वा उच्च १० का दशम हो तो अपने बाहुबलसे धनागम
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