पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१७

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भाषाटीकासमेता । (९) राशिमें एक सौरवर्ष होता है, जन्मसमयमें सूर्य्य स्पष्ट जितना राश्यादिहै उत- नाही पूरा पूरा जिस समयपर हो वह काल पुनर्वर्ष प्रवेशका है सावनमास से दिन ३६५ घटी १५५० ३१ विपल ३० में सूर्य उसी स्पष्टपर आजाता है इससे यह क्षेपक नियत है इसक्षेपक को पृथक् २ चारों स्थानों में गतवर्षसे गुनाकर स्वस्वजातिकें पूर्ण अंकोंसे ऊपर ऊपर चढायके आयुके सावन चर्षादि होते हैं, जैसे १ | १५ | ३१ | ३० गतवर्ष ३७ से गुनदिये ३७॥ ५५५ । ११४७ । १११० इनको घटी पल विपल ६० से उद्धृत कर- दिये ३७ वर्ष ४६ दिन ३४ घटी २५ पलं ३० विपल० सावन माससे गत हुये. यही रीति सर्वत्र जाननी. यहां वही ४६ आदिकोंमें जन्म वारादि जोड़नेसे वर्ष प्रवेश वारादि होगा ॥ १६ ॥ (अनु.) शिवनोब्दः स्वखाद्रींदुलवाढ्यः खा शेषितः ॥ जन्मतिथ्यन्वितस्तत्र तिथावन्दप्रवेशनम् ॥ १७ ॥ पूर्वोक्त विधिसे वर्षप्रवेश वारादि ज्ञातहुये में यह वर्षप्रवेश किसति- थिको होगा इसनिमित्त तिथ्यानयन प्रकार यह है कि गतवर्ष ११ ग्यारह से गुनदिया दो स्थानों में स्थापन करके एक में १७० का भाग देकर लब्धि दूसरे स्थानकी राशिमें जोड़ दिया, उपरांत ३० तीससे भाग देकर जो शेष रहै उसमें जन्मतिथि शुक्लप्रतिपदादिकमसे जोड़नेसे वर्षप्रवेश तिथि मिलती है. उदाहरण गतवर्ष ३७ | ११ से गुनदिये ४०७ दो स्थानोंमें स्थापन करके एक जगह १७० से भाग लिया लब्धि २ दूसरे में जोड़ दिया ४०९ इसमें जन्मतिथि ९ जोड़दी तो ४१८ हुये ३० से तष्ट करके शेष २८ कृष्ण त्रयोदशी के दिन वर्षप्रवेश हुआ. इसमें भी तिथि एकदिन आगे पीछे हो जाती है. गणितागत तिथिके पहिले वा पिछले वा उसी दिन वर्ष- गत वार जिस दिन मिले वही ठीक होती है. यहां वारकी मुख्यता है तिथिकी आवश्यकता वारको निश्चय करने निमित्त है कि एक महीने में एकवार ४ । ५ आवृत्ति करता है तो उनमेंसे तिथि एकको निश्चय कर देती है. जैसे इस उदाह- रण में २८ कृष्णत्रयोदशी मिली है और वर्षप्रवेश द्वादशी के दिन शनिवार होने