पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१९६

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(१८८) ताजिकनीलकण्ठी | O अनुष्ट ० - दिनप्रवेशेस्तिविधुरवस्थायांतुयादृशि ॥ तदवस्थातुल्यफलमसौदत्तेनसंशयः ॥ ३० ॥ दिनप्रवेशमें चन्द्र जिस प्रकारकी प्रवासादि अवस्थामें होवे उसी अवस्था के तुल्य फल देता है मासप्रवेशमेंभी निस्संदेह ऐसाही विचार करना ॥ ३० ॥ अनुष्टु० - विहायराशींश्चंद्रस्यभागाद्विघ्नाःशरोद्धृताः ॥ लब्धंगताअवस्थाः स्युभग्यायाः फलमादिशेत् ॥ ३१ ॥ अवस्था के लिये तत्काल चन्द्रमाके स्पष्ट राशिको छोड़कर शेष अंशा- दिको दोसे गुनाकर पांचसे भागलेना जो मिले वह भुक्त अवस्था हुई उससे आगेकी भोग्या जो हो उसके अनुसार फल कहना अवस्थाओंके नाम. प्रवास, नाश, मरण, जय, हास्य, रति, क्रीडित, सुत, भुक्ति, ज्वराख्य, कंप, स्थिर, यह १२ हैं मेषके प्रवाससे वृषके नाशसे मिथुनके मरणसे ऐसेही मीनके स्थिरसे गिनतीका क्रम है अवस्था बारहही हैं यहां इनमें से प्रत्येक राशिके पांचपांच ही लिये हैं कोई सभी राशियों में प्रवासहीसे गिनते हैं सो पक्षांतर है ॥३१॥ सुजंग० - प्रवासः प्रवासोपगे रात्रिनाथेऽर्थनाशस्तुनष्टोप गेमृत्युभीतिः ॥ मृतावस्थिते स्याज्जयायांजयस्तुविलासस्तुहास्योपगेकामिनीभिः॥३२॥ चंद्रमाकी अवस्थाओंका फल कहते हैं कि प्रवास अवस्था में चंद्रमा प्रवासही करता है तथा नाशमें धननाश मरणमें मृत्युभव जयामें विजय हास्यमें स्त्रियोंसे विलास देताहै ॥ ३२ ॥ सु० - रतौस्याद्वतिः क्रीडितासौख्यदात्रीप्रसुप्तापिनिद्रांक लिंदेहपीडाम् ॥ भयंतापहानीसुर्खस्युस्तुभुक्ताज्वराकंपितासुस्थितासुक्रमेण ॥ ३३ ॥ रतिमें ( प्रीति ) प्रसन्नता क्रीडितमें सुख सुप्तामें निद्रा और कलह और देहपीडा भुक्तामें भय और ज्वरायें संताप और कंपामें हानि स्थिरामें सुख ये कमसे अवस्थाओंके फल हैं यथार्थ मिलते हैं परन्तु चन्द्रमा अष्टम हो तो विपरीत फल देताहै ॥ ३३ ॥ इति श्रीमहीधरकृतायां नीलकंठीभाषाटीकायां दिनप्रवेशप्रकरणम् ॥१६॥