पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२०

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( १२ ) ताजिकनीलकण्ठी । स्पष्ट दुधका हुवा इसके पूर्व एक चरण पूर्वाभाद्रपदका ४ चरण उत्तराभाद्रपदका दो चरण- रेवतीका यह सब सात चरण भुक्तहुयेमें २३ अंश २० कला स्पष्ट भुक्त हुवा अब शेष रेवती तृतीय चर- णके अनुपातागत अंशादि • | ३३ | ३६ जोड़दिये २३ | ५३|३६ अंशादि स्पष्ट हुवा, बुध मीनका होनेसे राशिके स्थानमें ११ लिखना योग्यहै ११॥ २३ | ५३ | ३६ राश्यादि धका तत्काल स् होगया यही रीति और की भी जानना यह दोनों प्रकार सुगमता निमित्त स्थूलतर कहे हैं- स्थूल कार्ग्य इनसें साधन करते ही हैं सूक्ष्म विचार तो ग्रहलाघव महादेवी मकरंद रामविनोदादि करणसारणियोंके होते हैं और इनसे भी सूक्ष्म सिद्धांतों से होता है ऐसी ही विधि चंद्रस्पष्टकी भी है सो आगे है ॥ १८ ॥ . (भुजंगप्रयातम्) खषड्' भयातं भभोगोद्धृतं तत्वतर्कघ्न- धिष्ण्ये तं द्विनिघ्नम् ॥ नवा शशी भागपूर्वस्तु खखाभ्राष्टवेदा भभोगेन भक्ताः ॥ १९ ॥

जिस दिनका चंद्र स्पष्ट करना हो उसदिन नक्षत्र का इष्ट कालमें भुक्तभो ग्य सर्वभोग्य करलेना. रीति यह है कि इष्टसमयपर्यंत उक्त नक्षत्र जितनाघटी पलभुक्तहुवा उसे भुक्त कहते हैं, जितना बाकी रहा उसे भोग्य और दोनों को मिलाकर सर्व भोग्य होता है. भुक्तको ६० से गुनकर सर्व भोग्यके भाग लेनेसे जो मिले उसे पष्टि प्रमाण भुक्त कहते हैं वर्त्तमान नक्षत्रसे पूर्व अश्विन्यादि जितने नक्षत्र व्यतीत हुये उतनी संख्याको ६० साठसे गुणाकर वर्त्तमान नक्षत्रकी भभोगके भागसे मिली हुई घट्यादि जोड देनी सभी अतीत घटिका हुई उपरांत दोसे गुणाकर नौ ९ से भाग लेना लब्धि अंश होते हैं, शेष साठसे गुनाकर नौसे भाग देना लाभ कला होती हैं. पुनः शेष साठसे गुणाकर नौसे भाग देना लाभ विकला मिलती हैं, अंश ३० तीससे अधिक हो तो तीस हीसे भाग देना लाभ राशि शेष अंश होते हैं, यह चंद्रमा स्पष्ट सिद्धि होजाती है, उदाहरण- संवत् १९४३ वैशाख वदि द्वादशी शनिवार इष्ट घटी १३ पल ५४ इस समय पर उत्तराभाद्र नक्षत्रको भुक्तघटी ५४ पला १३ भोग्यघटी १० पला ४१ सर्व भोग्यघटी ६४ पला ५४ षटिप्रमाण भुक्त