भाषार्टाकासमेता । घटी ५० १० ८ अश्विनीसे पूर्वाभाद्रपर्यंत २५ नक्षत्र भुक्त हुये, इस अंकको ६० साठसे गुना किया १५०० हुए वर्त्तमान उत्तराभाद्रपछि मान भुक्त ५० । ८ जोड़दिया १५५०।८ इस्को दुगुना किया ३१०० | १६ नौसे भाग लिया लाभ ३४४ अंश हुये शेष ४ आठसे गुनाकर अव- शिष्ट १६ जोड़दिये २५६ नौसे भाग लिया लाभ २८ कलाहुई शेप ४ पुनःसाठसे गुनाकर २४० नौसे भाग लिया; लाभ २६ विकला हुई. अंशा- दिचंद्र स्पष्ट ३४४ । २८ । २६ हुआ अंशस्थानमें अंक तीससे अधिक होनेसे ३० से भागलिया. लाभ ११ राशि शेष १४ अंश हुये ११|१४|२८| २६ यह चन्द्र स्पष्ट होगया. दूसरे प्रकार उदाहरण यह है कि, अश्विनी से पूर्वा माद्रपदाके तीन चरणपर्यंत ग्यारह राशि पूरी भुक्त होगयीं, शेष पूर्वाका चतुर्थ चरण और उत्तराभाद्रके ४५ घटी षष्टिमान भुक्त पर्यन्त तीन चरण मुक्त होजानेसे १३ अंश २० कला मुक्त होगयीं अर्थात् उत्तराभाद्रके ४५ घटी भुक्त पर्यन्त चन्द्रस्पष्ट ११ १३।२०।० होगया, अब उत्तरा भाद्रके ५ घटी ८ पल अवशेष भुक्तमें हैं इसका त्रैराशिक यह है कि १५घटी भुक्तमें ३ | २० अंश स्पष्ट होता है तो ५ घ. ८ प में कितना होगा ? ५ । ८ घटीके पिंड ३०८ को ३।२० के पिंड २०० • से गुनाकिया६ १६० इसमें १५ घटीके पलात्मक पिंड ९०० से भागदिया, लाभ ६८ कला हुई शेष ४०० को साठसे गुनाकर २४००० भाग हार ९०० से भाग लिया लाभ २६ विकला हुई. यहां कला ६० से ऊपर होनेसे साठहीसे भागदिया लाभ १ अंश शेष ८ कला रहीं, ११ ८/२६ इस समलन लाभको पूर्वागत ११ । १३ । २०३० जोड़ दिया ११ । १४ । २६ यह चन्द्र स्पष्ट होगया, दोनहूं प्रकार एकही स्पष्ट यहां दूसरा उदाहरण पूर्व लिखा है ( अब चन्द्रमाकी गति बनानेकी रीति ) एक नक्षत्रका स्पष्ट १३ अंश २० कला हैं इसकी कला ८०० को साठसे गुनाकर ४८००० विकलापिंड होता है, इसमें नक्षत्रके सर्व भोग्यसे भागलेना जो मिले वह चंद्रमाकी स्पष्टगति होती है. उदाहरण - ४८००० में 00 ● में २८ । मिलता है . ●
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