पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२३

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भाषाटीकासमेता । (१५) भ्यश्च गतगम्यान्निजोदयात् ॥ शेषं खत्र्याहतं भक्तमशुद्धेन लवादिकम् ॥ २२ ॥ अशुद्धशुद्धमे हीनं युक्तनुर्व्यनां शकम् ॥ एवं लंकोदयैर्भुक्त भोग्यं शोध्यं पलीकृतात् ॥२३॥ तात्कालिक सूर्य स्पष्टमें अयनांश जोड़ना जो अंकराशिका है, उसके आगेकी राशि स्वोदय हुवा शेष अंशादि भुक्त हुये, तीसमें घटायके भोग्यांश होते हैं इन भोग्यांशादिकोंको वा भुक्तांशादिकोंको स्वोदय अर्थात् जिस राशिका अंशादि था उसी संख्याका स्वदेशीय लमखंडसे तीनों स्थानोंमें पृथक २ गुनाकर तीससे भाग लेना लब्धिपलादि सूर्य्यके मुक्त वा भोग्य होते हैं अर्थात् भुक्त/शादिकोंसे स्वोदयको गुनते हैं तो ३० तीसका लाभ भुक्तसंज्ञक हो ताहै और भोग्यसे किये हैं तो भोग्यसंज्ञक होताहै इन पलादिकोंको इष्टघटीकी पलाओंमें घटाय देना जो शेष रहै उसमें स्वोदयकी राशिसे नीचे अथवा उपरांत जितने लग्नखंड घंटें एक एक करके घटाते जाना जो लग्नखंड न घंटे उस्की अशुद्ध संज्ञा हुई घटानेसे जो शेष रहा उसे ३ ० तीससे गुनदेना. अशुद्ध- संज्ञक लमखंडसे भाग लेना लाभ अंशादि हुये स्वोदयसे लेकर जितने लग्नखंड पूर्व घटाये उतनी संख्याकी राशि उन लब्ध अंशादिकोंके पूर्व में स्थापन करनी यह भोग्य रीतिका क्रम है, भुक्त रीतिमें अशुद्ध में घटादेना उपरांत अयनांश घटाय देना यह लम्र स्पष्ट होजाता है. उदाहरण संवत् १९४३ वैशाख कृष्ण द्वादशी शनिवार इष्टघटी ३३ पला ५४ सूर्य्य स्पष्ट० | १८ | ४२।३१ अयनांश २२।४४ जोडदिया. १|११|२६|३१ यह सायन सूर्य्य हुवा इसमें १राशि है यह वृषस्वोदय हुवा शेष अंशादि ११।२६।३१भुक्तहुये ३० तीस में घटायके १८।३३।२९ ये भोग्यांशादि हुये अब इनको स्वोदय खंडोंसे गुनदेनाहै. लग्नखंडोंकी रीति यह है कि लंकोदप २७८/२९९।३२३ क्रमसे और यही उत्क्रमसे ३२३।२९९ । २७८ हैं इनमें अभीष्ट देशके चर- खंडोंको एक आवृत्ति तीनोंमें जोडदेना दूसरी आवृत्ति तीनों में घटाय देना- लग्नखंड होते हैं, जैसे श्रीनगरके पलमा ७ । ० ( त्रिष्ठा हवाः स्युर्दशभिर्भुजंगै-