पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२४

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(१६) ताजिकनीलकण्ठी । दिंग्भिश्वराद्धानि गुणोद्धृतांत्या ) इस विधिकरके ७० | ५६ । २३ चर- खंडहैं इनको एक आवृत्तिमें घटाय दिया तो मीन मेषके २०८ वृषकुंभके २४३ मिथुन मकरके ३०० और दूसरी आवृत्तिमें चरखंड जोड़ दिया तो कर्क धनके ३४६ सिंह वृथ्विकके ३५५ कन्यातुलाके ३४८ ये श्रीनगरके लग्नखंड हुये, यहां स्वोदय वृष २४३ से भोग्यांश गुनदिये ४३७४।८०१९ | ७०४७ नीचेके दो अंक ६० से चढायदिये तो ४५०९ | ३६ । २७हुये ३० से भागलिया लाभ १५०/१९/१२ भोग्य कालहुवा ऐसी ही रीति भुक्तांशादिसे भी होतीहै. अब इष्ट घटी १३ | ५४ की पलाओंमें ८३४ भाग्यांश १५० । १९ । १२ घटाय दिये ६८३ । ४० । ४८ हुये अब इसमें स्वोदय वृषसे उपरांत मिथुन ३०० घटाया ३८३ इसमेंभी कर्क ३४६ घटाया तो ३७४०४८ इसमें सिंह ३५५ घटाना था नहीं घटता तो इसकी अशुद्ध संज्ञा हुई शेष ३७ १४० । ४० को पृथक् तीससे गुन- दिया११३० । २४ । ० इसमें अशुद्ध ३५५ से भाग लिया लाभ ३ ॥११॥ ३ अंशादि हुये कर्क पर्यंत घटगये इससे ४ राशिके स्थानमें स्थापन कर दिया ४ | ३ । ११ । ३ इसमें अयनांश २२ | ४४ घटादिया तो ३ | १० | २७ । ३ यह लग्न स्पष्ट होगया, जब स्वोदय न घंटे तो, इष्टको ३० से गुनाकर सायन सूर्यके लग्नखंडसे भाग लेना तो अंशादि मिले वह सूर्योदय से पूर्वका इष्टकाल होय तो सायन सूर्यमें घटायके और परका होय तो जोड़के अयनांश घटायके लग्न स्पष्ट होजाताहै ॥ २१ - २३ ॥ ( अनुष्टुप् ) पूर्वपश्चान्नतादन्यत्प्राग्वत्तद्दशमं भवेत् । सषड्भे ल खे जायातुय्य लग्नो न तुर्य्यतः ॥ २४ ॥ षष्टांशयुक्तनुः संघिरग्रे पष्ठांशयोजनात् ॥ त्रयः ससंधयो भावाः पष्ठांशो नैक- युक्सुखात् ॥ २५ ॥ अग्रे त्रयः षडेवं ते भाईयुक्ताः परेपि- षट् ॥ खेटे भावसमे पूर्ण फलं संधिसमे तु खम् ॥ २६ ॥ अब दशम लग्न स्पष्टकी विधि कहते हैं, कि पूर्वोक प्रकारसे नतोन्नत